लखनऊ। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता के नाम से जाना जाता है, क्योंकि रोजाना विधिपूर्वक भगवान गणेश की पूजा करने से साधक को सभी बाधाओं से छुटकारा मिलता है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। वहीं, हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने का विधान है। वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में एकदंत संकष्टी चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भक्त गणपति बप्पा की कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत भी करते हैं। पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरूआत 16 मई को सुबह 04 बजकर 02 मिनट पर होगा और अगले दिन यानी 17 मई को सुबह 05 बजकर 13 मिनट पर तिथि खत्म होगी। इस प्रकार से एकदंत संकष्टी चतुर्थी का पर्व 16 मई को मनाया जाएगा।
शिववास योग समेत बन रहे हैं कई मंगलकारी संयोग
ज्योतिषियों की मानें तो ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर सुबह 07 बजकर 15 मिनट तक सिद्ध योग है। इसके बाद साध्य योग का संयोग बन रहा है। इन योग में भगवान गणेश की पूजा करने से सभी प्रकार के शुभ कामों में सफलता मिलेगी। ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतर्ु्थी तिथि पर शिववास योग भी पूरे दिन है। इस दौरान देवों के देव महादेव कैलाश पर विराजमान रहेंगे। इस योग में भगवान गणेश की पूजा करने से साधक को जीवन में सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी।
पूजा का मुहूर्त
सूर्योदय – सुबह 05 बजकर 13 मिनट पर
सूर्यास्त – शाम 07 बजकर 06 मिनट पर
चंद्रोदय- रात 10 बजकर 39 मिनट से
चंद्रास्त- सुबह 07 बजकर 51 मिनट पर
ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04 बजकर 06 मिनट से 04 बजकर 48 मिनट तक
विजय मुहूर्त – दोपहर 02 बजकर 34 मिनट से 03 बजकर 28 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त – शाम 07 बजकर 04 मिनट से 07 बजकर 25 मिनट तक
निशिता मुहूर्त- रात 11 बजकर 57 मिनट से 12 बजकर 38 मिनट तक
एकदंत संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
चतुर्थी तिथि के दिन की शुरूआत देवी-देवता के ध्यान से करें। स्नान करने के बाद मंदिर की सफाई करें। चौकी पर साफ कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश की प्रतिमा को विराजमान करें। गणपति बप्पा को पीला चंदन लगाएं और पुष्प अर्पित करें। देसी घी का दीपक जलाकर आरती करें। मोदक, फल और मिठाई समेत आदि चीजों का भोग लगाएं। गणेश जी के मंत्रों का जप और गणेश चालीसा का पाठ करें। आखिरी में लोगों में प्रसाद बाटें।