एसएनए में 17 दिवसीय नाट्य महोत्सव के 15वें दिन तीन नाटकों का मंचन
लखनऊ। मंचकृति समिति संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश के सहयोग से आयोजित 17 दिवसीय नाट्य महोत्सव के 15वें दिन एसएनए के संत गाडगे प्रेक्षागृह में तीन नाटकों का मंचन किया गया जिसका निर्देशन संगम बहुगुणा व विकास श्रीवास्तव ने किया। नाट्य महोत्सव में पहले नाटक विस्तृत नभ का कोई कोना का मंचन किया गया।
विस्तृत नभ का कोई कोना
सारांश-विस्तृत नभ का कोई कोना, दो सहेलियों माला और भावना की कथा है, एक शरीर से कमजोर है और दूसरी मन से। माला, अपनी शारीरिक कमजोरियों के बावजूद हर स्तर पर संघर्ष करती है। उसके पिता, उसका पति, उसका परिवार उसका शोषण करते हैं, पर वह फिर भी नहीं टूटती। फिर, उसके जीवन में एक मोड़ आता है, जो उसके आत्मविश्वास को चूर-चूर कर देता है और वह बिखर जाती है। माला और भावना एक दूसरे के लिए कुछ न करके भी बहुत कुछ करती हैं। संभवत:, ये आश्वासन कि कोई कहीं है, जो बिना किन्हीं शर्तों के पीछे खड़ा है, बहुत होता है। इसी छोटी सी आश्वस्ति के साथ, माला फिर से अपने आप को समेट कर, विस्तृत नभ के एक ननों से कोने की तलाश में निकल पड़ती है। क्या भावना भी उससे प्रेरणा ले पायेगी। मंच-पर संध्या दीप रस्तोगी, रचना मुकेश टंडन।
मजबूर
सारांश-कहानी मजबूर हमारी ग्रामीण व्यवस्था, हमारे अत्रदाताओं पर आधारित है। दिखाने को हम किसानों के लिए बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, परंतु उनकी वास्तविकता से अन्जान हैं। संतराम के जीवन में एक ऐसा भी वका आया जब परिवार के नाम पर सिर्फ वह और उसका बेटा मनीराम ही बचा, मनीराम को अपनी गायों से बहुत प्यार था और उनके लिए एक छप्पर डालना चाहता है। जिसके लिए वह घोड़ा-थोड़ा पैसा जोड़ता है परंतु वो ऐसा कर पाने में असमर्थ होता हैं, रिश्तों और भावनाओं के बीच समन्वय बैठाती ये कहानी अपने अंत को प्राप्त करती है। मंच-पर भानु प्रकाश पाण्डेय, राजेश मिश्रा, गुरुदत्त पाण्डेय, सुधा पाल, ज्योति सिंह।
प्यार कभी बूढ़ा नहीं होता
सारांश-यह कहानी कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा किए गए तहस-नहस को न केवल दशार्ती है, बल्कि स्पष्ट इंगित करती है कि मनुष्य ही मनुष्य का दुश्मन होता है, हमारी कुत्सित बुद्धि ही है। जो हमें सृष्टि की सुंदरता को नष्ट करने में कोई संकोच नहीं करती है। राकेश और रूपा बचपन से ही एक दूसरे से प्यार करते थे और उन दोनों की सगाई भी हो चुकी थी लेकिन खुदा को यह मंजूर न था। आतंकवादियों ने सारी व्यवस्था, परिवार, मकान सबको तहस-नहस कर दिया था। सन बिखर गया, भाई-भाई से, माँ पिता से, भाई-बहन से, जुदा हो गए थे, परंतु समय परिवर्तनशील है, एक व्यवस्था जो आज है कल नहीं रहती। धीरे-धीरे समय के साथ-साथ सन कुछ ठीक होता चला गया और सालों बाद राकेश और रूपा फिर एक दूसरे से मिले पर अब उन लोगों ने प्रण किया कि हम एक नए समाज को बनाएंगे हम पुन: नव निर्माण करेंगे।