कार्यशाला में मूर्तिकारों ने सीखे कला के गुर

आठ दिवसीय ग्लेज राकू फायरिंग कार्यशाला का समापन
लखनऊ। लखनऊ के जानकीपुरम स्थित क्ले एंड फायर स्टूडियो में एक विशेष आठ दिवसीय ग्लेज राकू फायरिंग कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला के प्रमुख प्रशिक्षक के तौर पर सिरेमिक आॅर्टिस्ट व क्ले एंड फायर के आॅनर प्रेमशंकर प्रसाद एवं सहयोगी प्रशिक्षक मूर्तिकार विशाल गुप्ता (स्वतंत्र कलाकार) और कोआॅर्डिनेटर अजय कुमार रहे। इस कार्यशाला में प्रतिभाग करने वाले युवा कलाकार अर्चना सिंह (कुशीनगर), दृश्या अग्रवाल (लखनऊ), वंशिखा सिंह (लखनऊ), प्रीती कनौजिया (लखनऊ) , प्रदीपिका श्रीवास्तव (सीतापुर) ,उत्कल पांडे (सीतापुर) ,हर्षित सिंह (लखनऊ), प्रकृति शाक्या (इटावा) थे।
कलाकार भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि बातचीत के दौरान कार्यशाला कोआॅर्डिनेटर अजय कुमार ने बताया कि कार्यशाला के प्रथम दिन दोनों प्रशिक्षको द्वारा सभी प्रतिभागी कलाकारों को टूल्स किट देकर स्वागत किया गया। उसके बाद राकु ग्लेज के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई जो इस प्रकार है- (राकू एक प्रकार का मिट्टी के बर्तन बनाने की जापानी विधी है जो पारंपरिक रूप से जापानी चाय समारोहों में उपयोग किया जाता है, ये अक्सर चाय के प्याले के रूप में बनाये जाते थे। पारंपरिक जापानी प्रक्रिया में, पकाये गए राकू के पत्रों को गर्म भट्टी से निकाल कर खुली हवा में ठंडा होने दिया जाता है। इसका प्रारंभ आधिकारिक रूप से 16वीं शताब्दी में जापान में हुआ था। जानकारी देने के बाद सभी प्रतिभागीयो को राकू के लिए मिट्टी बनाने की विधि बताई गई। सभी कलाकारों ने मिट्टी बनाकर तैयार कर ली तथा मूर्तिशिल्प बनाना शुरू किया। कार्यशाला के दुसरे दिन भी सभी प्रतिभागी कलाकारों ने अपने मूर्तिशिल्पों पर टेक्सचर देकर फिनिशिंग करके मिट्टी में फाइनल मूर्तिशिल्प तैयार किया।
उसके बाद मिट्टी में बने मूर्तिशिल्पों को 4 दिन सुखाया गया। सुखाया इसलिए जाता है कि भट्टी में जब पकाया जाये तो वह अच्छे से पक जाएं। अगर मूर्तिशिल्प सुखेगा नहीं तो वह भट्टी में टूट जाएगी। 4 दिन बाद जब मूर्ति शिल्प पूरी तरह सूख गई तो उसके बाद बिस्किट फायरिंग के लिए उन सभी मूर्तिशिल्पों को भट्टी में रख दिया गया।
बिस्किट फायरिंग कम तापमान पर की जाती है। उसके बाद अगले दिन इन मूर्तिशिल्पों को ठंडा होने के बाद भट्टी से निकाल लिया जाता है। उसके बाद बिस्किट फायरिंग हुए मूर्तिशिल्पों के ऊपर राकू ग्लेज को लगा कर फिर से भट्टी में रख दिया जाता है। इस बार भट्टी का तापमान पहले से ज्यादा होता है। इनको 2 से 3 घंटे तक पकाते हैं। एक तरफ यह प्रक्रिया चलती है वहीं दूसरी तरफ एक बड़े लोहे के बक्से में लकड़ी के बुरादे को डालते हैं तथा अखबार के छोटे छोटे टुकड़े कर के उस बक्से में डाल दिया जाता है। इसके बाद भट्टी में पक रही गर्म मूर्तियों को सड़सी से पकड़ कर एक एक करके इस बक्से में डालते हैं। उसके बाद अखबार व लकड़ी का बुरादा डाल कर बक्से को 1 घंटे के लिए बन्द कर देते हैं। जिसके कि बक्से से धुआं बाहर ना निकले। 1 घंटे बाद बक्से को खोल कर मूर्तियां को पानी से धुलते हैं। जिससे की मूर्तियों पर लगी राख साफ हो जाये। इतने लंबे प्रोसेस के बाद राकू ग्लेज होता है। इस तरह यह कार्यशाला सफल रही। सभी कलाकारों के मूर्ति शिल्प बहुत सुंदर निकले।

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