गुरु नानक देव और कबीर आराधक ही नहीं बल्कि आराध्य थे : प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित

पंजाबी अकादमी की ओर से गुरु नानक देव एवं कबीर के विचारों पर हुई गोष्ठी
लखनऊ। उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी और नेशनल पीजी कॉलेज के हिंदी विभाग की ओर से मंगलवार 18 मार्च को नेशनल पीजी कालेज में गुरु नानक देव एवं कबीर के विचारों का भी भारतीय समाज पर प्रभाव विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर अकादमी के प्रतिनिधि और कार्यक्रम संयोजक अरविंद नारायण मिश्र ने वक्ताओं को अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार विद्वान प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कहा कि मध्यकालीन युग के गुरु नानक जी और संत कबीर के विचार में पूर्ण रूप से समानता थी। उन्होंने जात-पात, ऊंच नीच, पाखंड, आडंबरों का पुरजोर विरोध किया था। गुरु नानक देव और कबीर दोनों ने भारत ही नहीं बल्कि विश्व की एकता को एक सूत्र में पिरोने का महान कार्य किया। दोनों आराधक ही नहीं बल्कि आराध्य थे।
संगोष्ठी में आमंत्रित वक्ता प्रो. हरि शंकर मिश्र ने कहा कि गुरु नानक देव और कबीर दोनों मध्यकालीन युग के महान संत थे। उनके अनुसार मध्यकालीन युग साहित्यिक दृष्टि से स्वर्ण कालीन युग है। संगोष्ठी में मेजर डॉ. मनमीत कौर सोढी के विचारों के उपरांत नेशनल पीजी कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. रामकृष्ण ने गुरु नानक और कबीर के जीवन और अध्यात्म को एक दूसरे का पूरक बताया। संगोष्ठी का सफल संचालन वरिष्ठ साहित्यकार रश्मि शील ने किया। इस संगोष्ठी में मुख्य रूप से नेशनल पीजी कॉलेज के प्राचार्य प्रो देवेंद्र कुमार सिंह, पूर्व अध्यक्ष, लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो सूर्यप्रसाद दीक्षित, लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य प्रो हरिशंकर मिश्र, नवयुग कन्या महाविद्यालय के दर्शनशास्त्र की विभागाध्यक्ष मेजर डॉ मनमीत कौर सोढी, नेशनल पीजी कालेज के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. राम कृष्ण, अकादमी के कार्यक्रम संयोजक अरविंद नारायण मिश्र सहित पंजाबी संगत की उपस्थित रही। इस संगोष्ठी में वक्ताओं ने यह भी बताया कि गुरु नानक देव और संत कबीर भारतीय संत परंपरा के दो महान व्यक्तित्व हैं, जिनकी रचनाओं ने भारतीय समाज को गहराई से प्रभावित किया। गुरु नानक देव ने सिख धर्म की नींव रखी और अपने उपदेशों के माध्यम से समाज में समानता, भक्ति और सेवा के मूल्यों को स्थापित किया वहीं, संत कबीर ने सामाजिक भेदभाव, अंधविश्वास और रूढ़ियों के विरुद्ध स्वर उठाया। दोनों महापुरुषों ने अपनी वाणी के माध्यम से भारतीय समाज को जागरूक करने का कार्य किया और उनके विचार आज भी समाज में प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं। गुरु नानक देव जी के त्रिसूत्रीय सिद्धांत- नाम जपो, किरत करो और वंड छको अर्थात बांट कर खाना, के संदेश से समाज में स्वावलंबन, श्रम की महत्ता और जरूरतमंदों की सहायता की भावना को बढ़ावा मिला।

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