औरंगाबाद। कोरोना वायरस महामारी और इसके चलते लागू किए गए लॉकडाउन के कारण महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में हिमरू बुनकर बुरी तरह प्रभावित हए हैं और उन्हें व्यापार की पूरी तरह बहाली के लिए विदेशी पर्यटकों का इंतजार है, जो इस कपड़े के प्रमुख खरीदार हैं।
हिमरू रेशम और कपास से बना एक कपड़ा है और मध्यकाल में इसकी शुरुआत औरंगाबाद से हुई थी। एक समय में हिमरू की काफी मांग थी, लेकिन अब यह अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है और इस कला को बचाने के लिए भौगोलिक पहचान (जीआई) चिह्न हासिल करने की कोशिश की जा रही है।
हिमरू बुनकरों के एक स्थानीय परिवार से संबंध रखने वाले इमरान कुरैशी ने कहा कि उनके व्यवसाय को लॉकडाउन के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ा है और अब उन्हें अनलॉकिंग प्रक्रिया से व्यापार के पटरी पर लौटने के लिए उम्मीद है। उन्होंने बताया, “लॉकडाउन से पहले हमारा कारोबार प्रति वर्ष 10 लाख रुपये से 12 लाख रुपये था। यह अब लगभग शून्य है।”
कुरैशी ने कहा कि विदेशी पर्यटक उनके प्रमुख ग्राहक हैं, जो लॉकडाउन के बाद से औरंगाबाद नहीं आ रहे हैं। कपड़ा विभाग के क्षेत्रीय उपायुक्त एस एम स्वामी ने कहा कि मुट्ठी भर परिवारों के बचे रहने के कारण हिमरू बुनाई की कला दुर्लभ हो रही है। इस कला को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
उन्होंने बताया, “हमने हिमरू कला को भौगोलिक पहचान (जीआई) चिह्न जारी करने के लिए लॉकडाउन से पहले महाराष्ट्र राज्य हथकरघा निगम को एक प्रस्ताव भेजा था।”[clear]