नागरिकता संशोधन कानून को लेकर पूरे देश में धरना, प्रदर्शन और हिंसक घटनाएं हो रही हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जामिया मिलिया विश्वविद्यालय और उसके आसपास हुई हिंसक घटना के बाद से ही उत्तर प्रदेश में छिटपुट घटनाएं होने लगी थीं। लखनऊ में राजनीतिक दलों के विरोध के बीच ही नदवा कालेज के छात्रों ने प्रदर्शन किया था, लेकिन तब पुलिस की मुस्दैती कहें या छात्रों का विवेक गरमा-गरमी और तनाव के बीच मामला निपट गया था।
लेकिन ऐसा लगता है कि असामाजिक तत्वों को प्रदेश और राजधानी की शांति व्यवस्था पसंद नहीं है। अराजक तत्व किसी भी कीमत पर आग लगाना चाहते हैं और मौका पाते ही वे अपने मंसूबे को अंजाम देने में लग जाते हैं। राजधानी के परिवर्तन चौक, हसनगंज और खदरा इलाके में जिस तरह सुनियोजित तरीके से नागरिकता कानून का विरोध करने के नाम पर हजारों लोगों को जुटाया गया, बड़े पैमाने पर पत्थर और र्इंट के टुकड़े जुटाये गये और पत्थरबाजी व आगजनी के सहारे राजधानी में घंटों तक अराजकता का तांडव किया गया वह पुलिस प्रशासन और उसके इंटेलीजेंस की तो बड़ी विफलता है ही साथ ही असामाजिक तत्वों के मनबढ़ होने का प्रमाण भी है।
उत्तर प्रदेश अब अस्सी-नब्बे के दशक से बहुत आगे बढ़ चुका है जब बात-बात पर हिंसक प्रदर्शन, छात्र संघर्ष और राजनीतिक सूरमाओं की जोरआजमाइश में जगह-जगह आगजनी, तोड़फोड़ व वाहनों को जलाने की घटनाएं होती थीं। आज हिंसा, अराजकता को कोई भी सभ्य नागरिक पसंद नहीं करता है। शांतिपूर्ण विरोध सांविधानिक हक है, लेकिन यह विरोध शांति काल में होना चाहिए। जिन लोगों ने शांतिपूर्ण विरोध की बात कहकर भीड़ जमा की, पत्थर जुटाये, हिंसा की आग भड़कायी या फिर हिंसा किया है, उन सबकी पहचान कर कठोर दण्ड देना होगा और नुकसान की भरपायी दोषियों की संपत्ति जब्त कर की जाये, ताकि भविष्य में कोई इतने दुस्साहस की हिम्मत न करे।
देश और प्रदेश शांति के लोग शांति चाहते हैं। शांति होने पर ही सामान्य जिंदगी चल सकती है। नागरिकता संशोधन कानून को संसद के दोनों सदनों ने पास किया है जो सांविधानिक रूप से ऐसा करने के लिए अधिकृत है और देश की सवा सौ करोड़ से अधिक आबादी की प्रतिनिधि संस्थान है। संसद या सरकार के फैसले पर विरोध प्रदर्शन करना, फैसले के खिलाफ शांतिपूर्ण सत्याग्रह करना, यह सांविधानिक अधिकार है, लेकिन विरोध और प्रदर्शन की आड़ में मुट्ठी भर लंपट सामान्य जनजीवन को बंधक नहीं बना सकते। विरोध प्रदर्शन के नाम पर पथराव, आगजनी, पुलिस, मीडिया की पिटाई, सार्वजनिक-निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना और पूरे शहर को बंधक बना लेने का दुस्साहस चिंताजनक है। सरकार को कानून व्यवस्था की समीक्षा कर आवश्यक सुरक्षा प्रबंध करने के साथ ही सभी तरह के विरोध प्रदर्शनों पर कुछ समय के लिए पाबंदी लगा देनी चाहिए ताकि कानून के राज को चुनौती देनी वाली हिंसक स्थितियां उत्पन्न न हों।