दो गोंड उपजातियों को एसटी श्रेणी में शामिल करने का आदेश खारिज

इलाहाबाद। हाईकोर्ट ने गोंड और उसकी उप जातियों नायक व ओझा को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का राज्य सरकार का आदेश रद्द कर दिया है । कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जनजाति तय करने का अधिकार सिर्फ संसद को है। राज्य सरकार, संसद द्वारा जारी गजट अधिसूचना में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकती है । न ही इसमें कुछ बढ़ाया या घटाया जा सकता है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मुनीश्वर नाथ भंडारी और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार-चतुर्थ की खंडपीठ ने कहा कि यूपी सरकार को गोंड जाति या उसके पर्यायवाची / उपजाति नायक और ओझा को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में नामित करने की अनुमति नहीं है। नायक जन सेवा संस्थान की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया गया है ।

 

याचिका में अपर मुख्य सचिव समाज कल्याण विभाग उत्तर प्रदेश सरकार के 15 जुलाई 2020 के आदेश को चुनौती दी गई थी। इस आदेश के पैरा 3 में राज्य सरकार ने कहा है कि गोंड और उसकी उप जातियों नायक व ओझा को अनुसूचित जनजाति माना जाएगा। याची का कहना था कि 8 जनवरी 2003 को केंद्र सरकार ने गजट नोटिफिकेशन जारी कर उत्तर प्रदेश के 13 जिलों महाराजगंज, मऊ, सिद्धार्थनगर, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, आजमगढ़, जौनपुर, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, मिजार्पुर और सोनभद्र की कुछ जातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया। राज्य सरकार द्वारा 15 जुलाई 20 को जारी आदेश के पैरा 3 में कहा गया है कि गोंड और उसकी उप जातियों नायक व ओझा को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में माना जाएगा। याची का कहना था कि राज्य सरकार के अधिकार में यह आदेश जारी करना उचित नहीं है। जातियों को लेकर अधिसूचना जारी करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 342 में संसद को है और राज्य सरकार इसमें कोई भी फेरबदल नहीं कर सकती है । मांग की गई कि 15 जुलाई 20 का आदेश रद्द किया जाए ।

 

अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल का कहना था कि 15 जुलाई का आदेश केंद्र सरकार द्वारा 8 जनवरी 2003 को जारी अधिसूचना के अनुरूप है, इसे जारी करने की आवश्यकता इसलिए पड़ी, क्योंकि तमाम लोग फर्जीवाड़ा कर जाति प्रमाण पत्र जारी करवा लेते हैं। अधिसूचना में शामिल जाति का न होते हुए भी लोग फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवा कर विभिन्न उद्देश्यों के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं । राज्य सरकार द्वारा जारी आदेश में केंद्र सरकार की अधिसूचना में कुछ भी जोड़ा नहीं गया है।

 

कोर्ट ने कहा कि 15 जुलाई का आदेश केंद्र सरकार की अधिसूचना के अनुरूप है, मगर इसके पैरा 3 में गोंड और उसकी उप जातियों को लेकर कही गई बातें राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं, इसलिए कोर्ट ने पैरा 3 को रद्द करते हुए राज्य सरकार को इस बात की छूट दी है कि वह जातियों को प्रमाणपत्र जारी करने से पूर्व अपने स्तर से छानबीन कर सकती है। यूपी राज्य के 13 जिलों के लिए कुछ जातियों को अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित करने के लिए 8 जनवरी 2003 को एक राजपत्र अधिसूचना जारी की गई थी। तत्पश्चात उत्तर प्रदेश सरकार के अपर मुख्य सचिव, समाज कल्याण अनुभाग द्वार 15 जुलाई, 2020 का एक आदेश जारी किया गया, जिसके तहत अधिसूचना में दिए गए 13 जिलों के लिए जातियों का नामकरण करते हुए, इसमें गोंड जाति या उपजाति नायक और ओझा को अनुसूचित जनजाति के रूप में उल्लेख किया गया है।

 

यह तर्क दिया गया कि आदेश को भारत सरकार की राजपत्र अधिसूचना की व्याख्या या प्रतिस्थापन के आदेश के रूप में गलत तरीके से लिया गया है। न्यायालय की टिप्पणियां कोर्ट ने देखा कि राज्य सरकार को आदेश जारी करने की आवश्यकता नहीं है या अधिसूचना की व्याख्या या प्रतिस्थापन देने के आदेश जारी करने की क्षमता है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी सरकार के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि 15 जुलाई, 2020 का आदेश भारत सरकार की राजपत्र अधिसूचना के अनुसार जाति और जिले का संदर्भ दिखाता है, लेकिन पैरा 3 के मध्य भाग में निर्दिष्ट जाति के अलावा, आक्षेपित आदेश के पैरा 3 के अंत में आगे गोंड जाति या इसके पर्यायवाची शब्द / उपजाति नायक और ओझा को अनुसूचित जनजातियों की श्रेणी में आने के लिए संदर्भित करता है।

 

 

पूर्वोक्त अनुमेय नहीं है। विवाद में एक पक्षकार मध्यस्थ को नामित नहीं कर सकता, भले ही मध्यस्थता समझौता इसकी अनुमति देता हो। हाईकोर्ट अदालत ने कहा कि यू.पी. राज्य को भारत सरकार द्वारा जारी राजपत्र अधिसूचना का पालन करना चाहिए। अदालत ने ध्यान दिया कि जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने में व्यक्तियों के कपटपूर्ण कृत्यों को रोकने के लिए आक्षेपित आदेश जारी किया गया था और इसलिए न्यायालय ने कहा कि हो सकता है कि हमने आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया हो, लेकिन पैरा 3 में कुछ प्रतिस्थापन को देखते हुए, इसे रद्द किया जाता है। कोर्ट ने अंत में स्पष्ट किया कि राजपत्र अधिसूचना में नामित आरक्षित जाति के उम्मीदवार के पक्ष में जाति प्रमाण पत्र जारी करते समय यू.पी. राज्य आवेदन की उचित जांच करने के लिए स्वतंत्र होगा ताकि जाति प्रमाण पत्र धोखाधड़ी से नहीं लिया जा सके।

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