दूरदर्शिता की कमी, नीतिगत अपंगता और अफसरों, कोटेदारों की लूट-खसोट कैसे बड़ी-बड़ी उपलब्धियों पर पानी फेर कर देश को शर्मसार करती है, वैश्विक भूख सूचकांक-2020 की रिपोर्ट इसका ज्वलंत उदाहरण है। भारत गेहूं, चावल, दूध, सब्जी, फल, मांस आदि के उत्पादन में दुनिया में पहले, दूसरे या तीसरे स्थान पर है। किसानों ने हाड़तोड़ मेहनत कर अनाज से गोदामों को भर दिया है।
दूध, सब्जी, फल, दलहन हर चीज का पर्याप्त उत्पादन हो रहा है, इतना हो रहा है कि इनका भंडारण, प्रसंस्करण और संरक्षण बड़ी चुनौती है। लेकिन दूसरे देश वैश्विक भूख सूचकांक में एकदम निचले स्तर पर है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2020 में भारत 107 देशों की सूची में 94वें स्थान पर है। इतने निचले स्तर पर होने का मतलब है कि अफ्रीका के कुछ छोटे, गृहयुद्ध या प्राकृतिक प्रकोप से ग्रस्त देशों को छोड़ दिया जाये तो भारत सर्वाधिक भूख से ग्रस्त देश है।
यहां तक कि भारत अपने तमाम पड़ोसी देशों से भी बहुत पीछे है। नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देशों से भी पीछे है जिनके बरक्स भारत की आर्थिक ताकत, प्रति व्यक्ति आय कहीं अधिक है। वैश्विक भूख सूचकांक में बांग्लादेश 75वें, म्यांमार 78वें, पाकिस्तान 88वें, नेपाल 73वें और श्रीलंका 64वें स्थान पर है। इनकी स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है लेकिन भारत की दशा बहुत ही बदतर है। दुर्भाग्य से यह स्थिति तब है जब खाद्यान्न उत्पादन साल-दर-साल रिकार्ड बना रहा है।
दूध उत्पादन, सब्जी उत्पादन और फलोत्पादन भी पर्याप्त है। लेकिन राजनीतिक लफ्फाजी और अधिकारियों की लूट खसोट के कारण जहां एक तरफ तमाम समस्याएं बनी हुई हैं वहीं भूख की स्थिति इतनी जटिल है कि हर दिन करोड़ों लोगों को भूखा सोना पड़ता है। करोड़ों बच्चे गरीबी और कुपोषण से अभिशप्त हैं। वैश्विक भूख सूचकांक में भारत के सबसे निचले पायदान पर बने रहने के पीछे राजनीतिक लफ्फाजी, अधिकारियों एवं कोटेदारों की लूट खसोट ही पूरी तरह जिम्मेदार है।
देश में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 487 ग्राम अनाज, 355 ग्राम दूध, 200 ग्राम फल व 401 ग्राम सब्जी की उपलब्धता है जो संतुलित पोषण के लिए जरूरी 2100 ग्राम कैलोरी के लिए पर्याप्त है, लेकिन राजनीति और भ्रष्टाचार ने किसानों के हाड़तोड़ मेहनत पर पानी फेर दिया। खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भता की गौरवपूर्ण स्थिति के बावजूद भूख विद्यमान है।करोड़ों लोग हर दिन भूखे सोने को अभिशप्त हैं, करोड़ों बच्चे कुपोषित हैं। इस पर उन नेताओं एवं दलों को शर्म करना चाहिए जो विकास के लंबे-चौड़े दावे करते हैं।
खाद्य सुरक्षा अधिनियम के लागू हुए 13 साल हो गये फिर भी लोग भूखे हैं तो इससे स्पष्ट है कि यह कानून लोगों की भूख मिटाने में असफल है। सरकार को तुरंत खाद्य सुरक्षा कानून में संशोधन कर प्रति व्यक्ति 10 मिलोग्राम अनाज की मदद नकद देना चाहिए ताकि गरीबों को पेट भरने में मदद मिले और कोटेदार और अधिकारी डकैती न कर सकें।