अपनी भाषा, संस्कृति एवं सरोकारों के प्रति जो लोग लगाव रखते हैं उनके मन में यह बात खटकती थी कि बंगाली फिल्म इण्डस्ट्री टॉलीवुड कोलकाता में है, पॉलीवुड पंजाब में, मलयाली फिल्म इण्डस्ट्री मॉलीवुड केरल में, असमिया फिल्म इण्डस्ट्री जॉलीवुड गोहाटी, तमिल फिल्मोद्योग उटालीवुड चेन्नई में और डेढ़ दशक पूर्व अस्तित्व में आये छोटे से राज्य छत्तीसगढ़ ने भी स्थानीय संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए स्थानीय फिल्म इण्डस्ट्री चॉलीवुड विकसित किया है, तो फिर दुनिया की सबसे बड़ी भाषाओं में शामिल हिन्दी फिल्मोद्योग बॉलीवुड एक गैर हिन्दी भाषी प्रदेश में क्यों है?
इसका सटीक जवाब निश्चित ही किसी के पास नहीं है, लेकिन मुम्बई में ही फिल्मोद्योग के विकसित होने के पीछे संभवत: एक महानगर के रूप में मुंबई का सबसे अधिक विकसित होना है। बॉम्बे सिनेमा का विकास बीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों में ही आकार लेने लगा था और उस समय देश में मुंबई महानगर के रूप में सबसे अधिक विकसित थी। यहां शूटिंग और फिल्म निर्माण के लिए बेहतर सुविधाएं थीं।
राजा हरिश्चन्द्र, आलमआरा जैसी शुरूआती फिल्में मुम्बई में ही शूट की गयी थी। भारत में फिल्म के निर्माण की शुरुआत मुंबई से ही हुई तो इसका कारण मुम्बई का सबसे विकसित शहर होना था। बाद में मुंबई न सिर्फ हिन्दी सिनेमा बॉलीवुड का केन्द्र बन गयी बल्कि आज मुंबई आर्थिक राजधानी के साथ ही अब भारतीय सिनेमा उद्योग का भी मुख्य केन्द्र है। लेकिन आज मुंबई में सिनेमा उद्योग को ही अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
मुंबई जैसे महंगे शहर में दूर दराज के कलाकारों का जाना और पहचान के लिए संघर्ष करना एक बड़ी चुनौती है। निश्चय ही तमाम प्रतिभाएं बॉलीवुड में निखरी हैं लेकिन जितने नाम हमारे जुबान हैं उससे कई गुना अधिक ऐसे कलाकार भी होंगे जो यूपी, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से मुंबई गये होंगे, वर्षों संघर्ष किया होगा और पूरी जवानी गंवाने के बाद भी कोई मुकाम नहीं मिला।
अगर यही फिल्म उद्योग लखनऊ, पटना, बनारस जैसे शहरों में होता तो अधिक से अधिक स्थानीय कलाकारों को मौका मिलता, स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा मिलता और आर्थिक प्रगति को भी गति मिलती है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में एक नहीं बल्कि कई शहरों में स्थानीय स्तर पर फिल्मोद्योग स्थापित हो सकते थे, लेकिन इस तरह शायद सरकारों का ध्यान नहीं गया।
पूर्व में फिल्म सिटी बनाने की बात की गयी थी और नोएडा में एक फिल्म सिटी है भी जहां मुख्यत: टीवी चैनलों के दफ्तर हैं, लेकिन फिल्मों की शायद ही कभी शूटिंग होती हो। लखनऊ में कोई फिल्म सिटी नहीं है लेकिन हर महीने किसी न किसी फिल्म की शूटिंग होती रहती है। कई फिल्में लखनऊ में शूट हुई और सुपर हिट हुई हैं।
मैडम सर, लापतागंज, भाभी जी घर पर हैं, जैसे सीरियल लोगों की जुबान पर रहते हैं, उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि पर आधारित हैं लेकिन शूटिंग मुंबई में होती है। देर से ही सही तमाम विवादों के बीच प्रदेश सरकार ने फिल्म सिटी बनाने की घोषणा की है। यह योजना अगर जमीन पर आकार लेती है तो प्रदेश में फिल्म उद्योग का तेजी से विकास होगा, रोजगार सृजन होगा और स्थानीय कलाकारों को प्रतिभा दिखाने का मौका मिलेगा।





