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कुतले खान ने राजस्थानी रंगों में रंगा मुक्ताकाशी का मंच

डॉ. राम मनोहर लोहिया पार्क में दो दिवसीय लोक संस्कृति के कार्यक्रम देशज का रंगारंग आगाज

लखनऊ। सोनचिरैया के 15 वें वर्ष के अवसर पर शनिवार 6 दिसम्बर को गोमतीनगर स्थित राम मनोहर लोहिया पार्क में दो दिवसीय लोक कलाओं के उत्सव देशज के 5वें संस्करण की शुरूआत हुई। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. मांडवी सिंह ने कहा कि देशज जिस तरह देश की कलाओं को सामने ला रहा है वो काबिले तारीफ है।
देशज की पहली शाम को राजस्थान के लोकप्रिय गायक कुतले खान ने यादगार बनाया। उन्होंने गायन की शुरूआत विश्व प्रसिद्ध राजस्थानी मांड केसरिया बालम से की। इस प्रस्तुति के बाद उन्होंने मशहूर रचना छाप तिलक सब छीनी के माध्यम से सूफी रंग आगंतुकों पर चढ़ाया। इस जोशीली प्रस्तुति के उपरांत राजस्थानी मांगनिया कम्युनिटी के गीत सावन आयो प्रस्तुत कर उन्होंने सबको झूमने पर मजबूर किया। उनकी प्रस्तुतियों में उनका साथ की-बोर्ड पर अमोल डांगी, बैंजो पर सुधीर गन्धर्व, ढोलक पर गाजी खान, हारमोनियम पर चंपे खान और सह-गायन में दायम खान और सफी खान ने दिया। पहले दिन कार्यक्रम का शुभारंभ, संस्था की अध्यक्ष पद्मश्री विद्या विन्दु सिंह और लोकगायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने दीप प्रज्वलित कर किया। इसके उपरांत मशहूर गायिका मालिनी अवस्थी ने देशज की शुरूआत वन्दे मातरम गीत से की। इस गीत पर सभी प्रदेशों के कलाकारों ने एक साथ प्रस्तुति दी जिसे देख सब लोग देशभक्ति के भाव से सराबोर हो गए। इस प्रस्तुति के बाद अयोध्या से आये संस्था के ट्रस्टी और लेखक यातीन्द्र मिश्र ने कहा कि जिस सोनचिरैया संस्था ने 15 वर्ष पूरे किये हैं वह स्वर्ण जयंती और हीरक जयंती भी मनाये।
कार्यक्रम की पहली प्रस्तुति केरल के प्रसिद्ध थेय्यम नृत्य से हुई। यह सिर्फ एक नृत्य ही नहीं बल्कि एक दिव्य अनुष्ठान है जो केरल में अक्टूबर से मार्च तक किया जाता है। इस प्रस्तुति में 8 कलाकारों ने चामुंडा थेय्यम और पुट्टम थेय्यम की प्रस्तुति दी। इसे केरल से लेकर आईं मशहूर मोहिनीअट्टम कलाकार, जयप्रभा मेनन ने बताया कि थेय्यम शब्द देवता के लिए प्रयोग होता है। उत्तरी केरल में 500 प्रकार के थेय्यम प्रस्तुत किये जाते हैं। इस नृत्य प्रस्तुति में भव्य श्रंगार, विशाल मुकुट, तांबे और पीतल के आभूषण और चेहरे पर पारंपरिक रंगों से सुसज्जित होकर देवी के उग्र रूप को दिखाया गया।
इसके बाद राजस्थान के नृत्यों के सिरमौर घूमर नृत्य की प्रस्तुति हुई। प्रस्तुति की शुरूआत रंगीलो राजस्थान और कदे आवो जी रंगीलो म्हारे देश गीत से हुई। लखनऊ पर इस प्रस्तुति का रंग कुछ ऐसा चढ़ा कि शहरवासी उत्साहित हो मंच पर जा पहुंचे और पद्मश्री मालिनी अवस्थी और कलाकारों के साथ नृत्य का आनंद लेने लगे। कुल 10 लोगों ने अंजना कुमावत के नेतृत्व में यह खास प्रस्तुति दी।
राजस्थान के बाद गुजरात के नृत्य डांगी के रंग देखने को मिले। गुजरात से सुरेश पवार के नेतृत्व में 15 कलाकारों ने यह नृत्य पेश किया। नृत्य में नई फसल और विवाहोत्सव का उल्लास भी देखने को मिला। इसमें पिरामिड प्रदर्शन आकर्षण का केन्द्र बना।
अगली कड़ी में मिजोरम से जोसंगलउरा जोते के नेतृत्व में 16 सदस्यों ने चेराओं नृत्य की प्रस्तुति दी। इस नृत्य में खेती के लिए पहाड़ों प्रवास के दौरान फसल की रक्षा के दौरान किये जाने वाले आनंद नृत्य को दशार्या गया। इसे बैम्बू डांस भी कहते हैं क्योंकि कलाकार बैम्बू के बीच नृत्य करते हैं।
इसके बाद छत्तीसगढ़ से गंगा के नेतृत्व में 20 लोगों ने गोंडमारी नृत्य प्रस्तुत किया। तिरडूड वाद्य पर सींगनुमा सेहरा पहन कर समूह ने विवाह उत्सव का उल्लास पेश किया।
इसके उपरांत पंजाबी गिद्धे ने सबका दिल जीत लिया। रवि कुनर के निर्देशन में हुई इस प्रस्तुति को 10 कलाकारों ने पेश किया। नानका दादका गीत से हुई इसमें लड़के के शादी की खुशी उसके ननिहाल में कैसी होती है और लड़के के पिता और माता के परिवार की प्यारी नोक-झोक देखते ही बनी। इस प्रस्तुति में गिद्दे की बोलियों ने भी आकर्षित किया। अंत में महाराष्ट्र का रंग सांगी, लोक नृत्य पेश किया गया। इस नृत्य को छेबिल दास विष्णु गौली के नेतृत्व में 3 कलाकारों ने प्रस्तुत किया। ढोल, पौड़ी और संबल आदि वाद्य पर इस नृत्य के माध्यम से होली का उल्लास दिखाया गया। कार्यक्रम में लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी, वरिष्ठ गायक पं. धर्मनाथ मिश्र सहित बड़ी संख्या में उपस्थित शहरवासियों ने इस उत्सव का भरपूर लुत्फ उठाया। रविवार 7 दिसम्बर को शाम चार बजे देशज की अंतिम शाम गोमती नगर के राम मनोहर लोहिया पार्क में आयोजित की जाएगी।

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