बच्चों को संस्कार देने की सीख दे गया ‘कंधे’

एसएनए के वाल्मीकि सभागार में नाटक का मंचन
लखनऊ। सुगत सांस्कृतिक एवं समाजिक संस्था की नाट्य प्रस्तुति कंधे का मंचन एसएनए के वाल्मीकि सभागार में किया गया। नाटक का लेखन संजय त्रिपाठी और निर्देशन आदित्य शर्मा ने किया। यह कहानी ऐसे परिवार की है जिसमें दो लड़कों का परिवार और शर्मा जी एवं उनकी पत्नी मिसेज शर्मा हैं. जोकि लकवाग्रस्त हैं। दोनों लड़कों का परिवार अमेरिका में रहता है। और यहां लखनऊ में बेचारे शर्मा जी और उनकी पत्नी रहतीं हैं। लड़के अपने काम में इतने व्यस्त रहते हैं कि माँ-बाप को लगभग भूल गये हैं, न आना-जाना, न कोई फोन कॉल, और न ही वाट्सअप पर मैसेज।
आज शर्मा जी और उनकी मिसेज की शादी को 50 साल हो गये हैं। सुबह से आस-पास के लोगों का आना जाना लगा हुआ है। काम करने वाले अकेले शर्मा जी हैं, पर इन लोगों के व्यवहार से घर पर लोग आते जाते रहते हैं। शाम को पार्टी रखी गयी है उसी की तैयारी चल रही है। पार्टी चल रही होती है कि मिसेज शर्मा की चार सहेलियां भी आ जाती हैं फेसबुक देखकर, जोकि उनकी किटी पार्टी ग्रुप की हैं। पार्टी धूम-धाम से होती है, गाना गाने का भी दौर होता है, सभी मिलकर गाना गाते हैं। केक काटते हैं, खूब धूम-धड़ाका करते है। अगले दिन जब मिसेज शर्मा की नींद खुलती है, तो देखती हैं, शर्मा जी फर्श पर लुढ़के पड़े हैं, आवाज लगातीं हैं। चूंकि लकवाग्रस्त हैं तो किसी तरह बेड से गिरकर घिसट-घिसट कर उन तक पहुंचतीं हैं, देखतीं हैं शर्मा जी नहीं रहे, खूब रोतीं हैं। फिर फोन ढूंढती हैं तो देखती एक किनारे पर पड़ा है, फोन की ओर बढ़तीं हैं तब तक पेपर वाला और पड़ोसी दरवाजा तोड़कर अन्दर आते हैं। तो आंटी कहतीं हैं अंकल को देखो और खुद बेहोश हो जातीं हैं। लगभग सभी जानने वाले आते हैं तब कंर्फम हो जाता है दोनों गुजर चुके हैं। उनके लड़कों को फोन मिलाया जाता है तब दोनों आने में असमर्थता व्यक्त करते हैं।
तब अंसारी उनसे कहते हैं, कोई बात नहीं यह हिन्दुस्तान है हम सब मिलकर देगें कंधा। शर्मा जी से परवरिश में कुछ चूक अवश्य हुई है नहीं तो बच्चें ऐसे न निकलते। बच्चों में संस्कार माँ के गर्भ से लेकर कक्षा 8 तक ही दिये जा सकते हैं, उसके बाद तो बच्चों का खुद का विवेक काम करने लगता है वो स्कूल और समाज से सीखने लगते हैं। बच्चों को संस्कार कह कर नहीं… कर्म करके दीजिए। अपने बच्चों को विदेश पढ़ने के लिए भेजिए, पर सोच समझकर, समझाकर भेजिए। जो आज इनके साथ हुआ है, वो कल आपके साथ भी हो सकता है। नाटक में अहम भूमिका सुरेश श्रीवास्तव, अनामिका सिंह, तरूण यादव, एके सिंह, मनोज तिवारी आदि ने निभायी।

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