मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) के जिला अस्पताल के 46-वर्षीय वार्ड व्बय महिपाल सिंह को 16 जनवरी 2021 को दोपहर लगभग 12 बजे कोविशील्ड का शॉट दिया गया था ताकि उन्हें कोविड-19 संक्रमण से सुरक्षित रखा जा सके। महिपाल कभी कोविड-19 पजिटिव टेस्ट नहीं हुए थे, उनका राष्ट्रव्यापी अभियान के तहत टीकाकरण कराया गया था, लेकिन अगले दिन यानी 17 जनवरी 2021 की दोपहर में महिपाल के सीने में दर्द हुआ, उनकी सांस उखड़ने लगी और उनका निधन हो गया। अस्पताल के सीएमओ डा. एमसी गर्ग का कहना है, मैं नहीं समझता कि वैक्सीन के किसी साइडइफेक्ट से यह मौत हुई है। फिर भी हम मृत्यु की असल वजह जानने का प्रयास कर रहे हैं। जितना जल्दी संभव होगा शव को पोस्टमर्टेम के लिए भेजा जायेगा।
मुरादाबाद में टीकाकरण अभियान के पहले दिन (16 जनवरी) 479 स्वास्थ्यकर्मियों को वैक्सीन शट्स दिए गये थे, उनमें से शेष ने अभी तक कोई शिकायत नहीं की है। देशव्यापी टीकाकरण अभियान के पहले दो दिन के दौरान 2,24,301 व्यक्तियों को कोविड-19 वैक्सीन दी गई, जिसमें दोनों कोविशील्ड व कोवैक्सिन शामिल हैं। अगर मुरादाबाद में एक वार्ड व्बय की मृत्यु को छोड़ दिया जाये तो इनमें से सिर्फ 447 ने बुखार, सिरदर्द, जी मितलाना, चक्कर आना व चकत्ते जैसे हल्के एलर्जिक रिएक्शन की मामूली शिकायतें की हैं। इस आधार पर यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है टीकाकरण में फिलहाल जिन दो वैक्सीन का इस्तेमाल किया जा रहा है वे दोनों ही सुरक्षित हैं।
इसलिए कुछ हेल्थ वर्कर्स का यह आरोप उचित प्रतीत नहीं होता कि उन्हें गिनी पिग्स बनाया जा रहा है। उनकी शंकाएं दुरु स्त नहीं हैं। उन्हें कोई ऐसा पदार्थ नहीं दिया जा रहा है जो उनके लिए हानिकारक हो। लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि जो पदार्थ दिया जा रहा है, उससे वास्तव में लक्ष्य अनुरूप नतीजे बरामद होंगे यानी क्या वैक्सीन नया कोरोना वायरस महामारी पर विराम लगाने में सफल होगी? यह सवाल इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि डाटा के अभाव में वैक्सीन का प्रभावी होना अब भी रहस्य बना हुआ है। गौरतलब है कि भारत बायोटेक ने आॅन रिकार्ड कहा है कि उनके ट्रायल का तीसरा चरण अभी पूर्ण नहीं हुआ है।
इसके अतिरिक्त सीरम इंस्टिट्यूट की वैक्सीन का भारत में एफ्फीकेसी ट्रायल (प्रभावोत्पदाकता ट्रायल) डाटा भी उपलब्ध नहीं है। सीरम इंस्टिट्यूट की वैक्सीन का एफ्फीकेसी डाटा ब्राजील व इंग्लैंड से लिया गया है। इन दोनों देशों के डाटा को मिलाकर 70 प्रतिशत एफ्फीकेसी का दावा किया गया है जबकि दोनों देशों में खुराक की मात्रा अलग अलग थी। वह दावा कर रहे हैं कि स्टेटिसटिकली यह संभव है। लेकिन यह कैसे मुमकिन है? ब्राजील के ट्रायल में तो आधी खुराक-पूरी खुराक का प्रयोग किया गया था और इंग्लैंड के ट्रायल में दो पूरी खुराकों का इस्तेमाल हुआ था।