नई दिल्ली। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के अनुसार, कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान शहरी पुरुषों ने महिलाओं की तुलना में अधिक नौकरियां खोईं। सीएमआईई के प्रबंध निदेशक और सीईओ महेश व्यास ने अपने विश्लेषण में कहा कि कोविड-19 की पहली लहर के कारण नौकरियों का सबसे अधिक नुकसान शहरी महिलाओं में हुआ था। उन्होंने कहा कि शहरी महिलाएं कुल रोजगार का लगभग तीन फीसदी हिस्सा हैं, लेकिन महामारी की पहली लहर में कुल नौकरी का 39 फीसदी नुकसान महिलाओं को हुआ। व्यास ने कहा कि 63 लाख नौकरियों के नुकसान में से, शहरी महिलाओं को 24 लाख का नुकसान हुआ।
दूसरी लहर से पुरुषों पर आया नौकरी छूटने का बोझ
हालांकि, दूसरी लहर के दौरान, शहरी महिलाओं को नौकरियों का सबसे कम नुकसान हुआ। अप्रैल-जून 2021 के दौरान नौकरी छूटने का बोझ पुरुषों पर आ गया है जिसमें शहरी पुरुषों के बीच नौकरियों का कहीं अधिक नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों को अपनी नौकरी वापस मिल गई या उन्हें वैकल्पिक नौकरी मिली, उन्हें कम मजदूरी दरों पर काम मिला और घरेलू आय में रोजगार की तुलना में बहुत अधिक गिरावट आई है। शहरी पुरुष भारत में कुल रोजगार का लगभग 28 फीसदी हिस्सा हैं। मार्च 2021 तक उन्हें नौकरियों के नुकसान कम यानी 26 फीसदी था। लेकिन, जून 2021 को समाप्त तिमाही में कुल नौकरी के नुकसान में उनकी हिस्सेदारी 30 फीसदी से अधिक थी।
तीसरी लहर का खतरा
भारत में कोरोना वायरस के मामले अभी थमे नहीं हैं। लोग ज्यादा कर्ज लेने पर मजबूर हुए हैं। कोरोना के चलते करोड़ों की संख्या में लोग बेरोजगार हुए हैं। वहीं जो नौकरी कर रहे हैं, उनकी आय में भारी कमी आई है। इस बीच महंगाई ने मुश्किलें और भी बढ़ा दी हैं। अब तीसरी लहर का खतरा मंडरा रहा है। यदि कोरोना महामारी की तीसरी लहर आई तो फिर लॉकडाउन या कोरोना कर्फ्यू लगाने जैसे हालात पैदा हो सकते हैं और एक बार फिर सब ठप्प पड़ सकता है।