डियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक कोरोना वायरस का संक्रमण अभी भारत में दूसरे स्तर पर है। इसका मतलब ये है कि फिलहाल संक्रमण उन्हीं लोगों तक फैला है जो संक्रमण वाले देशों से भारत आए या फिर उन लोगों में फैला जो संक्रमित लोगों के संपर्क में आए। भारत की तैयारियों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की नजर है। उसने कोरोना वायरस से निपटने के लिए भारत के प्रयासों की सराहना की है। खासकर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जनता कर्फ्यू की।
उसका मानना है कि दूसरे चरण में संक्रमण की चेन तोड़कर ही कोरोना के खिलाफ जंग जीती जा सकती है। यानी सामुदायिक संक्रमण विस्तार के पहले। अगर पूरा देश 14 घंटे (सुबह सात बजे से रात दस बजे) या एक तरह से पूरे 24 घंटे के लिए लोग अपने घरों तक सीमित हो जाएं तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। देश के लिए अभी यह तुलनात्मक रूप से आसान विकल्प है। वैसे भी, जब ये बीमारी चीन तक ही सीमित थी, तब ही विश्व स्वास्थ्य संंगठन की रीजनल डायरेक्टर (साउथ इस्ट एशिया) पूनम खेत्रपाल सिंह ने स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को तीन चिट्ठियों के जरिए आगाह किया था।
संगठन ने अपनी चिट्ठी में कोरोना से निपटने के लिए क्या जरूरी कदम हर देश को उठाने चाहिए उसका भी जिÞक्र किया था। उसी दिशा निर्देश का पालन करते हुए भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने काम शुरू किया और केन्द्र सरकार ने इसके लिए ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स का भी गठन किया। अब संगठन ने ताजा चेतावनी में कहा है कि पूरे विश्व में युवाओं पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ सकता है। माना जा रहा है कि तीसरे चरण में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या इतनी बढ़ जाएगी कि भारत के पास जितने लैब हैं उनमें सभी लोगों के टेस्ट पूरे नहीं किए जा सकते। आईसीएमआर के अनुसार कोरोना वायरस फैलने के चार चरण हैं।
पहले चरण में वे लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए जो दूसरे देश से संक्रमित होकर भारत में आए। यह स्टेज भारत पार कर चुका है, क्योंकि ऐसे लोगों से भारत में स्थानीय स्तर पर संक्रमण फैल चुका है। दूसरे चरण में स्थानीय स्तर पर संक्रमण फैलता है, लेकिन ये वे लोग होते हैं जो किसी ना किसी ऐसे संक्रमित शख़्स के संपर्क में आए जो विदेश यात्रा करके लौटे थे। तीसरा और थोड़ा खतरनाक स्तर है ‘कम्युनिटी ट्रांसमिशन’ का, जिसे लेकर भारत सरकार चिंतित है।
कम्युनिटी ट्रांसमिशन तब होता है जब कोई व्यक्ति किसी ज्ञात संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए बिना या वायरस से संक्रमित देश की यात्रा किए बिना ही इसका शिकार हो जाता है। पिछले दो सप्ताह में जितनी बार भारत सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने प्रेस वार्ता की है, उसमें इस बात पर विशेष जोर देते हुए कहा गया है कि भारत में अभी तीसरा चरण नहीं आया है। इसके बाद, चौथा चरण होता है। तब संक्रमण स्थानीय स्तर पर महामारी का रूप ले लेता है।
फिलहाल, भारत सरकार के अनुसार देश में 70 से ज्यादा टेस्टिंग यूनिट हैं जो आईसीएमआर के अंतर्गत काम कर रहे हैं। आईसीएमआर के महानिदेशक डॉक्टर बलराम भार्गव के मुताबिक जल्द ही करीब 50 और सरकारी लैब कोविड-19 की जांच के लिए शुरू होंगे। कोविड-19 की जांच के लिए भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से करीब दस लाख किट और मांगी हैं। आईसीएमआर ने यह भी दावा किया है कि 23 मार्च तक भारत में दो ऐसे लैब तैयार हो जाएंगे जहाँ 1400 टेस्ट रोज हो सकेंगे।
इससे तीन घंटे के भीतर कोविड-19 की जांच की जा सकेगी। इस तरह की कुछ अन्य मशीनें भी भारत सरकार ने विदेश से मंगवाई हैं। अमरीका और जापान के पास इस तरह की मशीने हैं जिनसे एक घंटे में कोविड-19 की जांच की जा सकती है। भारत अगर कोरोना संक्रमण के तीसरे चरण में पहुंचता है तो ऐसा माना जा रहा है कि इस स्थिति से निपटने के लिए प्राइवेट लैब में भी कोरोना के जांच की जरूरत पड़ेगी।
आईसीएमआर के महानिदेशक के मुताबिक पिछले दिनों प्राइवेट लैब्स ने ऐसी इच्छा जताई है कि वे कोरोना संक्रमण के तीसरे चरण में सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं, लेकिन इस जांच के लिए किट की उन्हें जरूरत पड़ेगी। जो लैब्स सरकार के साथ संपर्क में हैं, उनके मुताबिक सरकार से बातचीत चल रही है कि एक टेस्ट पर कितना खर्च आएगा। प्राइवेट लैब इसके लिए लोगों से पैसा लेगी या सरकार उन्हें इस जांच के लिए मुफ़्त में किट मुहैया कराएगी, लेकिन इतना तय है कि सरकार प्राइवेट लैब्स के साथ इस विषय पर बातचीत कर रही है।
इस बारे में आईसीएमआर की बातचीत कुछ सर्टिफाइड लैब के साथ चल रही है। सरकार ने इस बारे में दिशा निर्देश भी जारी किए हैं कि अगर किसी प्राइवेट अस्पताल या लैब में ऐसे संक्रमित व्यक्ति की पहचान होती है तो उसकी रिपोर्ट तुंरत सरकार के रजिस्टर्ड नंबर पर दिया जाए। कोरोना वायरस का संक्रमण लोगों में कितना फैल रहा है, इसकी जानकारी के लिए रोजाना सैंकडों की संख्या में संदिग्ध लोगों के टेस्ट कराए जा रहे हैं। कोरोना संक्रमण पता करने के लिए दो तरह के जांच की जरूरत पड़ती है। पहली बार में जिनका टेस्ट रिजल्ट पॉजिटिव आता है उन्हीं को दूसरे स्तर के लिए जांचा जाता है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक एक टेस्ट पर 3000 रुपये का खर्च आता है। जबकि, पहले स्तर के लिए 1500 रुपये तक का खर्च आता है। इसके आलावा, हजारों लोगों के टेस्ट पिछले कई दिनों में हो चुके हैं। फिलहाल इसका सारा खर्च केंद्र सरकार ही उठा रही है। प्रधानमंत्री ने हाल ही में सार्क देशों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए जब चर्चा की थी, तो भारत की तरफ से 10 मिलियन डॉलर के कोरोना फंड की शुरुआत की बात भी कही थी। बता दें कि चाहे स्कूलों में छुट्टियां करने की बात हो या फिर विदेश जाने और आने पर पाबंदी लगाने की बात हो, समय-समय पर सरकार ने इन सबके लिए जरूरी दिशा-निर्देश जारी कर जानकारी दी और पर्याप्त मात्रा में प्रचार प्रसार भी किया।
सरकार ने प्रचार में बॉलीवुड के स्टार अमिताभ बच्चन को भी उतारा है। खुद स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन भी अभियान में हिस्सा ले रहे हैं और वीडियो भी पोस्ट कर रहे हैं। सरकार की इस तरह की पहल से लोगों में जागरूकता बढ़ी है और लोग सावधानी बरतने लगे है। इतना ही नहीं, जब बाजार में सैनिटाइजर और मास्क की कमी की खबरें आई तो सरकार ने तुरंत इसे जरूरी सामान की लिस्ट में डाल दिया। ताकि, इसकी कालाबाजारी रोकी जा सके। कोरोना मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार ने हेल्प लाइन के साथ-साथ जरूरी टोल फ्री नंबर भी जारी किया है।
सोशल डिस्टेंसिंग के लिए किया करें क्या ना करें इस पर गाइडलाइंस जारी किए हंै। सरकार के मुताबिक वो राज्य सरकारों से लगातार संपर्क में हैं और हर दिन प्रेस कांफ्रेंस कर मीडिया को भी इसके लिए अपडेट कर रही है। भारत सरकार ने कोरोना वायरस के खतरे को भांपते हुए सबसे पहले स्थिति का जायजा लेने के लिए ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (जीओएम) बनाया। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन की अध्यक्षता में गठित इस ग्रुप आॅफ मिनिस्टर्स में शामिल हैं केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप पुरी, केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर, जहाजरानी मंत्री मनसुख मंडवाडिया, गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, और स्वास्थ्य विभाग के राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे।