जब तक पैसा था तो खा लिया, अब नहीं है पैसा तो क्या करें

लखनऊ। दिल्ली और उत्तर प्रदेश के आसपास के अन्य राज्यों से राजधानी लखनऊ पहुंचे सभी दिहाड़ी मजदूरों का एक जैसा हाल था। कई किलोमीटर का रास्ता परिवार समेत पैदल ही नापने के बाद बसों के जरिए शनिवार और रविवार लखनऊ के चारबाग बस अड्डे पहुंचे मजदूरों का कहना था कि अब दिल्ली में रुक कर वे क्या करेंगे क्योंकि जब तक पैसा था तो खा लिया और अब पैसा नहीं है तो वहां क्या करें, ऐसे में घर जाना ही बेहतर है।

भोजन-पानी के प्रबंध को लेकर दिल्ली सरकार के प्रति कई लोगों में नाराजगी नजर आई। उनका कहना था कि खाना खत्म हो गया, पैसे रहे नहीं तो वहां रुक कर क्या करें। जब सवाल किया गया कि सरकार की ओर से भोजन-पानी का प्रबंध किया गया था या नहीं तो जवाब था कि ऐसा कोई प्रबंध नहीं किया गया। इसी वजह से वे अपने घरों को लौटने के लिए मजबूर हुए। हजरत निजामुद्दीन से लखनऊ पहुंचे पंकज चौहान ने कोरोना से बचने के लिए एहतियातन चेहरे पर रुमाल बांध रखा था।

उन्हें कानपुर जाना था और वह अपनी बस की प्रतीक्षा कर रहे थे। इस सवाल पर कि दिल्ली छोड़कर क्यों चले आए, क्या वहां की सरकार ने कोई व्यवस्था नहीं की थी तो चौहान ने जवाब दिया, “हमारे कमरे पर राशन पानी सब खत्म हो गया था।” जब पूछा, क्या मिला नहीं? आप लोगों ने कहीं देखा नहीं, पता नहीं किया?, तो जवाब आया हमारे पैसे खत्म हो गए थे। जब कहा गया कि दिल्ली की सरकार तो कह रही थी कि पैसे दिलवाएंगे तो चौहान ने कहा, “कब तक रहेंगे ऐसे …. भूखे थोड़े ना मरेंगे।”

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