मानव जीवन के मूल्यों को दर्शाता ‘द बेट’

एसएनए के वाल्मिकी सभागार में नाटक का मंचन
लखनऊ। स्व. शैलेन्द्र तिवारी को समर्पित नाटक द बेट का मंचन एसएनए के वाल्मिकी सभागार में किया गया। नाटक का निर्देशन अलोक कुमार शुक्ला ने किया। द बेट एंटोन चेखव द्वारा लिखा गया एक प्रसिद्ध लघु कथा है, जो 1889 में प्रकाशित हुई। यह कहानी दो पात्रों-एक अमीर साहूकार और एक युवा वकील के बीच एक शर्त पर आधारित है, जो जीवन के मूल्य, मनोविज्ञान और मानव स्वभाव के बारे में गहरे सवाल उठाती है। कहानी की शुरूआत एक पार्टी से होती है, जहां साहूकार और वकील मृत्युदंड व आजीवन कारावास पर बहस करते हैं। वकील साहूकार की इस राय से असहमत होता है कि आजीवन कारावास, मृत्युदंड से अधिक मानवीय है। शर्त के तौर पर वकील यह कहता है कि वह 15 साल तक एकांत में रहेगा और यदि वह इस शर्त को पूरा करता है, तो बैंकर उसे 2 करोड़ देगा।
वकील शर्त जीतने के लिए अपने कमरे में अकेला रहता है, लेकिन समय के साथ वह एकांत में गंभीर आत्म-चिंतन, साहित्य और दर्शन की ओर मुड़ता है। 15 सालों के बाद, साहूकार, जो अब आर्थिक संकट से गुजर रहा है, सोचता है कि वह वकील को मारकर शर्त से बच सकता है। लेकिन जब वह कमरे में जाता है, तो पाता है कि वकील ने पैसे की लालच को त्याग दिया है और शर्त से पहले ही कमरे को छोड़ने वाला है। यह कहानी मानव जीवन का मूल्य, एकांत और मानसिक प्रभाव, पैसे का भ्रष्टाचार, शर्त की निरर्थकता आदि को दर्शाता है ।

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