पारंपरिक सोहराई कला से रूबरू हुए छात्र

-सौंदर्य एवं सांस्कृतिक विकास कार्यक्रम-2025-26 के अंतर्गत पारंपरिक सोहराई कला कार्यशाला
लखनऊ। राजाजीपुरम स्थित लखनऊ पब्लिक स्कूल एवं कॉलेजों के कला विभाग ने फ्लोरेसेंस आर्ट गैलरी के सहयोग से सोमवार को पारंपरिक सोहराई कला कार्यशाला का सौंदर्य एवं सांस्कृतिक विकास कार्यक्रम (2025-26) के अंतर्गत उद्घाटन किया। कार्यक्रम का उद्घाटन राजाजीपुरम में आयोजित समारोह में प्रधानाचार्या भारती गोसाईं, उप-प्राधानाचार्या और विंग-इंचार्जों की उपस्थिति में किया गया।
फ्लोरेसेंस आर्ट गैलरी की संस्थापक निदेशक नेहा सिंह ने अपने उद्घाटन वक्तव्य में कहा, आने वाली पीढ़ी और पिछले पीढ़ी के बीच पुल बनेगी। ज्ञान को युवा मनों में विकसित किया जाना चाहिए। कला विभागाध्यक्ष राजेश कुमार और गैलरी के क्यूरेटर भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने इस पहल का स्वागत करते हुए कार्यक्रम की सफलता के लिए शुभकामनाएँ दीं।
कार्यशाला को डॉ. कुमुद सिंह (पूर्व प्रमुख, चित्रण एवं चित्रकला विभाग, के.एस. साकेत पी.जी. कॉलेज, अयोध्या और वर्तमान में उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजातीय संस्कृति संस्थान, लखनऊ के सदस्य) द्वारा भी स्वदेशी कला परंपराओं के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण कदम बताया गया और उन्होंने शुभकामनाएँ प्रेषित कीं।
यह कार्यशाला 18 से 23 अगस्त 2025 तक आयोजित की गयी है और इसे कॉलेज की कला शिक्षिकाएँ एवं कलाकार पुष्पा देशवाल एवं सविता विश्वकर्मा संयोजित कर रहीं हैं। इस कार्यशाला में कक्षा 5 से 12 तक के छात्रों ने भाग लिया है। इस कार्यशाला का उद्देश्य सोहराई कला के दर्शन, रूपांकन और तकनीकों से छात्रों को परिचित कराना है। कार्यशाला का समापन 23 अगस्त को छात्र कलाकृतियों की प्रदर्शनी तथा भागीदारी प्रमाणपत्र वितरण के साथ होगा।
ज्ञातव्य हो कि सोहराई पेंटिंग पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और ओडिशा के जनजातीय समुदायों द्वारा पारंपरिक रूप से की जाने वाली प्राचीन भित्ति कला है। यह कला प्रकृति-आधारित शब्दावली का उपयोग करती है—जानवरों, पक्षियों, वृक्षों और प्रजनन-प्रतीकों के रूप में—और मानव जीवन, कृषि चक्र तथा पर्यावरण के बीच के संबंध का उत्सव मनाती है। इस कार्यशाला के माध्यम से छात्र लोक-ज्ञान और दृश्य कथाकला से जुड़ेंगे तथा भारतीय लोक व जनजातीय कलाओं के प्रति प्रशंसा और जागरूकता बढ़ेगी।
इस प्रकार के कार्यशाला के उद्देश्य को संक्षेप में कहें तो भारतीय लोक एवं जनजातीय कला के प्रति सराहना बढ़ाना, स्वदेशी शब्दावली के माध्यम से आत्म-अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करना सांस्कृतिक विरासत के प्रति जागरूकता और रचनात्मक कौशल का विकास करना है। यह पहल संस्थान की कलात्मक कौशल विकास के साथ साथ सांस्कृतिक जागरूकता को मिश्रित करने की निरंतर प्रतिबद्धता को दशार्ती है, यह सुनिश्चित करते हुए कि छात्र केवल रचनात्मक तकनीकों को ही नहीं सीखते, बल्कि भारत की विविध कलात्मक परंपराओं के साथ गहरे संबंध भी बनाते हैं।

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