नई दिल्ली। साल 2022 से फुकुशिमा स्थित खस्ताहाल परमाणु संयंत्र से रेडियोधर्मी दूषित जल छोड़े जाने के जापान के फैसले से भारत में चिंताएं बढ़ गईं हैं। विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि इससे एक गलत चलन की शुरूआत होगी और दुनियाभर के विभिन्न भागों के तटीय क्षेत्रों में जलीय जीवों तथा मानव जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
इस जल में सीजय़िम, ट्रिटियम, कोबाल्ट और कार्बन-12 जैसे रेडियोधर्मी समस्थानिक मिले होंगे। इनका प्रभाव खत्म होने में 12 से 30 साल तक का समय लग सकता है। इसकी चपेट में आने वाली कोई भी चीज करीब करीब तत्काल ही बर्बाद हो जाएगी। इसके अलावा इससे मत्स्य उद्योग संबंधी अर्थव्यवस्था भी संकट में घिर जाएगी।
साथ ही यह कैंसर समेत कई बीमारियां भी पैदा कर सकता है। रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) के स्वास्थ्य विज्ञान महानिदेशक ए के सिंह ने कहा, ऐसा पहली बार होगा जब इतनी भारी मात्रा में समुद्र में रेडियोधर्मी जल छोड़ा जाएगा। इससे एक गलत चलन शुरू हो जाएगा और अन्य भी ऐसा करने लगेंगे। पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं वाजिब हैं। लिहाजा दुनियाभर में वैकल्पिक प्रबंधों पर बहस छिड़ सकती है।
गौरतलब है कि 11 मार्च 2011 को जापान के उत्तर-पूर्वी तट पर 9.0 तीव्रता का भूकंप आया था, जिसके बाद उठीं 15 मीटर ऊंची सूनामी लहरों के चलते 5,306 मेगावाट के फुकुशिमा परमाणु संयंत्र को नुकसान पहुंचा था। यह 1986 में चेर्नाेबिल की घटना के बाद दूसरी सबसे बड़ी परमाणु आपदा थी। इस घटना के बाद रिएक्टरों से निकले 12 लाख टन रेडियोधर्मी दूषित जल को 1,000 टैंकों में फुकुशिमा संयंत्र के निकट एक बड़े क्षेत्र में रोक दिया गया था।
जापान सरकार ने 2022 से रेडियोधर्मी दूषित जल को समुद्र में छोडऩे का फैसला किया है। दूषित जल को छोड़ने का फैसला वर्षों की बहस के बाद 16 अक्टूबर 2020 को लिया गया था। सिंह समेत भारत सरकार के शीर्ष परमाणु स्वास्थ्य वैज्ञानिकों का कहना है कि दूषित जल को समुद्र में छोड़े जाने का सीधा प्रभाव मानव और जलीय जीवों के जीवन पर पड़ेगा।