लिक्विडिटी क्रंच, मांग में कमी, शिथिल पड़ती प्रगति और रोजगार अवसरों में अपेक्षित वृद्धि न होने जैसी चुनौतियां जब एक साथ दिखने लगें, तो उसका इलाज अकेले मौद्रिक प्रणाली से संभव नहीं है। अर्थव्यवस्था आंतरिक और वाह्य मोर्चे पर गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है। ऐसे में सरकार और रिजर्व बैंक दोनों को मिलकर संकुचन और संभावित मंदी के शिकंजे से निकालने के लिए सभी तरह के राजकोषीय एवं मौद्रिक उपायों के साथ टैक्स राहत और प्रोत्साहन जैसे हथियारों का प्रयोग करना चाहिए। रिजर्व बैंक के पास मौद्रिक प्रणाली के रूप में आर्थिक प्रोत्साहन के लिए बहुत ही सीमित स्पेस हैं। जब से आरबीआई में गवर्नर के रूप में पूर्व आर्थिक सचिव शक्ति कांता दास पहुंचे हैं तब से लेकर अब तक कुल चार बार रेपो रेट में कटौती कर आरबीआई की तरफ से कंज्यूमर, ऑटो और होमलोन जैसे सेगमेंट में 110 बेसिस प्वाइंट की राहत दे चुके। इसके बावजूद अर्थव्यवस्था में किसी तरह की न तो गर्मी देखने को मिल रही है और न ही बैंक आरबीआई रेपो रेट कट को अंतिम उपभोक्ता तक पास-ऑन कर रहे हैं।
चालू वित्तीय वर्ष में जितनी बार भी आरबीआई की आर्थिक समीक्षा आयी है, हर बार जीडीपी अनुमान में कटौती की गयी है। मई में 7.2 फीसद प्रोजेक्ट किया था, जून में 7 फीसद और अगस्त के प्रथम सप्ताह में जो अनुमान आरबीआई ने दिया उसमें 6.9 फीसद की प्रगति दर प्रस्तावित की है। अगर पहले चार महीनों में ही तीन बार विकास के अनुमान में कटौती करनी पड़ रही है तो यह मानने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि अर्थव्यवस्था गंभीर संकट के दौर से गुजर रही है। कंज्यूमर ड्यूरेबल, आॅटो, हाउसिंग से लेकर सदाबहार रहने वाले एफएमसीजी में भी उतनी गर्मी नहीं है। अर्थव्यवस्था में चौतरफा संकुचन के बीच भारतीय रिजर्व बैंक ने इस साल चौथी बार रेपो रेट में कटौती की है। नीतिगत ब्याज दरों में 0.35 फीसद की कटौती के साथ रेपो रेट 5.4 फीसद पर आ गया है, लेकिन अभी अधिकांश बैंकों की प्राइम लेंडिंग रेट करीब-करीब नौ फीसद के आसपास है। बैंक जो पहले से ही घाटे में हैं वे आरबीआई की राहत को उपभोक्ता तक पहुंचा नहीं रहे हैं और दूसरे जब तक वित्तीय तंत्र में लिक्विडिटी नहीं होगी तो सस्ते ब्याज दरों का क्या मतलब?
अधिकांश पीएसयू बैंक आज भी खुलकर लेंडिंग नहीं कर रहे हैं क्योंकि उनके पास फंड की भारी कमी है। आर्थिक दुष्चक्र से निकलने के लिए सिर्फ नीतिगत ब्याज दरों में कटौती ही पर्याप्त नहीं है। बल्कि सरकार को विकास तेज करने, रोजगार सृजन को बढ़ावा देने और अर्थव्यवस्था के बड़े लक्ष्यों का ेप्राप्त करने के लिए आर्थिक संकुचन के इस कुचक्र को ‘पम्प प्राइमिंग’ जैसे बड़े झटकों से तोड़ना चाहिए। सरकार को फिजिकल डिफिसिट के लक्ष्य को शिथिल करते हुए हाउसिंग, इन्फ्रा, सड़क, एग्रीकल्चर जैसे क्षेत्रों में व्यय बढ़ाना चाहिए। सस्ते कर्ज के साथ वित्तीय प्रणाली में और तरलता डाली जाये। बैंक लेंडिंग बढ़ायें और आर्थिक सुधारों के साथ कर राहत जैसे उपायों से अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए जोरदार झटका देने की जरूरत है।