नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि चीन और भारत के बीच कहीं अधिक व्यवस्थित और मजबूत संबंधों के लिए दोनों देशों द्वारा बहुध्रुवीयता और पारस्परिकता की व्यापक स्वीकृति महत्वपूर्ण है। साथ ही, यह वैश्विक पुनर्संतुलन की वृहद बुनियाद पर निर्मित होना चाहिए।
हाल ही में जारी अपनी पुस्तक द इंडिया वे: स्ट्रेटेजीज फॉर ए अनर्सेटेन वर्ल्ड में उन्होंने कहा है कि भारत कोई एकमात्र देश नहीं है, जो चीन के साथ संबंध पर ज्यादा ध्यान दे रहा है बल्कि पूरी दुनिया ऐसा कर रही है और प्रत्येक देश बातचीत के नियम और शर्तों को अपने हिसाब से फिर से तय कर रहा है। विदेश मंत्री ने यह पुस्तक मई में पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में सैन्य गतिरोध से पहले लिखी थी। इस पुस्तक को हार्पर कॉलिन्स इंडिया प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।
जयशंकर ने लिखा है, यदि सामान्य दृष्टिकोण है तो आंतरिक रूप से क्षमताओं को मजबूत करने और बाहरी परिदृश्य का आकलन करते हुए चीन के साथ समझ बनाई जा सकती है। इस पूरी कवायद में भारत अपने आकार, स्थान, क्षमता, इतिहास और संस्कृति के आधार पर एक विशेष स्थान हासिल कर लेगा।
विदेश मंत्री के अनुसार नवम्बर 1950 में सरदार पटेल और जवाहरलाल नेहरू द्वारा चीन से संपर्क करने के तरीके पर विचार-विमर्श किए जाने के बाद से बहुत कुछ बदल गया है। उन्होंने कहा, विश्व की घटनाएं न केवल चीन के समग्र रवैए, बल्कि भारत के प्रति उसके विशिष्ट व्यवहार को निर्धारित करती हैं। फिलहाल, भारत के लिए आवश्यक है कि वह इस बड़ी तस्वीर की निरंतर निगरानी करे क्योंकि यह उसके चीन के साथ संबंधों को परखने का काम करता है।
जयशंकर ने कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र का भविष्य निरंतर आधार पर बातचीत करने वाली ताकतों की जटिल श्रेणी में है। उन्होंने कहा, भारत के लिए, चीन के साथ उसके संबंध और पश्चिमी देशों के साथ उसकी साझेदारी एक महत्वपूर्ण तत्व होगा। रूस के साथ नई संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं। जापान, आसियान और ऑस्ट्रेलिया के साथ संबंधों के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्व स्पष्ट रूप से कम नहीं आंका जा सकता है। कोविड-19 के बाद जनजीवन पर उन्होंने कहा कि भारत भी कोरोना वायरस का प्रकोप बढऩे पर वैश्विक माहौल में व्यापक प्रवृत्तियों के जरिए खुद को ढालेगा।