सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अनुसचित जाति एवं जनजाति के लिए निर्धारित आरक्षण में इन जातियों का उप वर्गीकरण कर आरक्षण कोटे के बंटवारे को संविधान के खिलाफ न मानते हुए इस संदर्भ में 2005 में ईवी चेनैय्या बनाम आन्ध्र प्रदेश राज्य मामले में दिया गये फैसले की समीक्षा का आदेश दिया है और पूरे मामले को बड़ी बेंच को संदर्भित कर दिया।
गौरतलब है कि 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति को एक ईकाई मानते हुए यह फैसला दिया था कि किसी भी समुदाय को अनुसूचित जाति घोषित करने या इस श्रेणी से बाहर करने का अधिकार राष्ट्रपति के पास है। इसलिए राज्य सरकारें अपनी तरफ से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के बीच उप वर्गीकरण नहीं कर सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट की यह व्यवस्था अब तक लागू है।
लेकिन अब इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति के उपवर्गीकरण एवं आरक्षण के बंटवारे पर राज्यों की अधिकारिता को स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की है कि आरक्षण का लाभ समान रूप से सभी वर्गों को नहीं मिला है। संविधान पीठ ने टिप्पणी की कि एससी-एसटी और अन्य पिछड़ा वर्गों की विभिन्न जातियों के बीच भारी विषमताएं हैं और इस कारण सबसे निचले स्तर पर जो जातियां मौजूद हैं उन्हें आरक्षण का न्यायोचित लाभ नहीं मिल पाया है।
ऐसे में राज्य सरकारों का यह दायित्व है कि सभी वर्गों को समान रूप से आरक्षण का लाभ पहुंचायें क्योंकि राज्य सरकार किसी भी वर्ग को लाभ से वंचित नहीं कर सकती हैं। इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि राज्य सरकार अगर आरक्षण का समुचित लाभ निचले तबके तक पहुंचाने के लिए अपनी तरफ से अनुसूचित जाति एवं जनजाति के भीतर उप श्रेणी बनाती हैं तो यह सांविधानिक प्रावधान के खिलाफ नहीं है।
संविधान पीठ ने सवालिया लहजे में कहा कि जब राज्य सरकारों को रिजर्वेशन देने का अधिकार है तो उसे उप श्रेणी बनाने का अधिकार कैसे नहीं हो सकता है? राज्य सरकार को आरक्षण देने का अधिकार है और वह उप श्रेणी या उप जातियां बनाकर भी यह लाभ दे सकती है। इस तरह सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने 2005 के फैसले के खिलाफ अपना मत प्रकट करते हुए इस मुद्दे को बड़ी बेंच को संदर्भित कर दिया है।
गौरतलब है कि 2005 में जब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने राज्यों द्वारा उप श्रेणी बनाने को संविधान के विरूद्ध माना था तो वह संविधान पीठ भी पांच सदस्यों वाली ही थी। चूंकि पांच सदस्यों के बेंच के फैसले को पांच सदस्यों वाली बेंच पलट नहीं सकती है इसलिए इसे बड़ी बेंच को संदर्भित किया गया है और अब इस पर सात जजों या उससे भी बड़ी बेंच सुनवाई करेगी। बहरहाल इस पर बड़ी बेंच क्या निर्णय देगी यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन आरक्षण में आरक्षण के मुद्दे पर एक बार फिर राष्ट्रव्यापी बहस खड़ी हो सकती है।
कई राज्यों ने आरक्षण का वाजिब लाभ सभी जातियों तक पहुंचाने के लिए एससी, एसटी एवं ओबीसी जातियों में उप श्रेणी (महादलित, अपर बैकवर्ड, मोस्ट बैकवर्ड आदि) बनाकर आरक्षण कोटे का विभाजन करने का प्रयास किया। इसमें बिहार, यूपी, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु जैसे राज्य शमिल हैं। अदालत की टिप्पणी के बाद इस मुद्दे पर फिर से बहस और राजनीति शुरू हो सकती है।