पाँच दिवसीय कोहबर कला कार्यशाला का समापन
लखनऊ। कोहबर चित्रकला, जिसमें वनस्पतियों, जीवों, आध्यात्मिक प्रतीकों और पवित्र ज्यामिति का प्रतीकात्मक चित्रण है, ने युवा शिक्षार्थियों को भारत के स्वदेशी कला रूपों से जुड़ने का एक रोमांचक माध्यम प्रदान किया। एलपीएस बाराबंकी की प्रधानाचार्य डॉ. रितु सिंह ने समापन समारोह के दौरान कहा, आज की तेज-तर्रार दुनिया में, छात्रों को उनकी जड़ों से फिर से जोड़ना महत्वपूर्ण है। यह कार्यशाला केवल तकनीक के बारे में नहीं थी, बल्कि उन कहानियों, परंपराओं और भावनाओं को समझने के बारे में थी जो ये प्राचीन पैटर्न पीढ़ियों से आगे बढ़ाते आ रहे हैं। लखनऊ पब्लिक स्कूल, बाराबंकी शाखा द्वारा प्रधानाचार्या डॉ. ऋतु सिंह के दूरदर्शी नेतृत्व में आयोजित सप्ताह भर चली कोहबर चित्रकला कार्यशाला में परंपरा और रचनात्मकता के जीवंत रंगों का अद्भुत संगम देखने को मिला। कार्यशाला का समापन एक भावपूर्ण समापन समारोह के साथ हुआ, जिसमें 50 से अधिक युवा प्रतिभागियों की कलात्मक अभिव्यक्तियों का जश्न मनाया गया, जिन्होंने उत्तर प्रदेश की कोहबर कला की समृद्ध लोक परंपराओं में खुद को सराबोर किया।
यह कार्यशाला फ़्लोरेसेंस आर्ट गैलरी द्वारा समर्थित एक सहयोगात्मक प्रयास था, जिसकी संस्थापक-निदेशक श्रीमती नेहा सिंह ने इस पहल की संकल्पना और उसे सुगम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रख्यात कलाकार और शिक्षाविद डॉ. कुमुद सिंह ने सत्रों का नेतृत्व किया और कोहबर परंपरा की सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक बारीकियों पर गहन अंतर्दृष्टि प्रदान की। कोहबर परंपरा उत्तर प्रदेश मूल की चित्रकला शैली है जिसका ऐतिहासिक संबंध स्त्री अभिव्यक्ति, उर्वरता और पवित्र मिलन से है।
क्यूरेटर श्री भूपेंद्र अस्थाना ने कार्यशाला में अपनी क्यूरेटोरियल विशेषज्ञता प्रदान की और यह सुनिश्चित किया कि शैक्षणिक और दृश्यात्मक ढाँचे समकालीन प्रासंगिकता में निहित हों और साथ ही पारंपरिक रूपांकनों और विषयों के प्रति भी समर्पित रहें। इस कार्यक्रम में लखनऊ पब्लिक स्कूल्स एंड कॉलेजेस के कला विभागाध्यक्ष श्री राजेश कुमार की भी सक्रिय भागीदारी रही, जिन्होंने सभी स्तरों पर शैक्षणिक संरचना और छात्र जुड़ाव का समन्वय किया।
डॉ. कुमुद सिंह के विशेषज्ञ मार्गदर्शन में, छात्रों ने उत्तर प्रदेश में कोहबर की उत्पत्ति और विवाह अनुष्ठानों व घरेलू कहानी कहने में इसके महत्व का पता लगाया। प्रत्येक सत्र में प्रतिभागियों को इस शैली की विशेषता वाले व्यवस्थित रेखाचित्र, प्रतीकात्मक रंग पैलेट और दोहरावदार पैटर्न में गहराई से उतरने का अवसर मिला। युवा कलाकारों ने पारंपरिक प्राकृतिक रंगों और आधुनिक सामग्रियों, दोनों के साथ प्रयोग किए, जिससे विरासत और नवाचार के बीच एक सेतु का निर्माण हुआ।
डॉ. सिंह ने जोर देकर कहा, कोहबर एक कला रूप से कहीं बढ़कर है—यह एक अनुष्ठान है, नारीत्व और जीवन का उत्सव है। छात्रों को यह सिखाना उन्हें एक जीवंत विरासत सौंपने जैसा है जिसकी वे अपनी भाषा में पुनर्व्याख्या कर सकते हैं।