सप्त दिवसीय श्रीमद भागवतम कथा
लखनऊ। इस्कॉन मन्दिर, लखनऊ में सप्त दिवसीय श्रीमद भागवतम कथा मे परम पूज्य भक्ति पदम सौरभ प्रचारक स्वामी महाराज जी ने बताया कि जहां श्रीमद भगवत गीता का अंत होता है वहीं श्रीमद भागवत प्रारंभ होती है। श्रीमद भगवत गीता कहती है कि हमको क्या करना चाहिए और श्रीमद् भागवतम कहती है कि हमको कैसे करना चाहिए। श्रीमद भागवतम में कैतव धर्म का वर्णन नहीं है अर्थात शरीर से संबंधित धर्म को कैतव धर्म कहते हैं, भागवत वह सुन सकता है जिसके हृदय में ईर्ष्या एवं द्वेष नहीं है वह श्रीमद भागवतम सुनने का अधिकारी है। श्रीमद् भागवत केवल परमहंसों के लिए है संसारियों के लिए नहीं है लेकिन शुकदेव गोस्वामी जी की अहेतुकी कृपा से श्रीमद् भागवत संसारियों के लिए भी उपलब्ध हो सकी है। श्रीमद् भागवत के अंदर भगवान के लक्षण प्राप्त होते हैं। श्रीमद् भागवत की रचना व्यास जी ने पहले भी की थी लेकिन वह मोक्ष पर आधारित थी तब नारद जी ने व्यास जी को सिर्फ परम भगवान श्री कृष्ण से प्रेम सम्बन्धित भक्ति से ओत-प्रोत भागवत की रचना का आदेश दिया और उनको श्रीमद् भागवत कह सुनायी। परम भगवान श्री कृष्ण ही भागवत और भागवत ही परम भगवान श्री कृष्ण हैं ’ भागवत का आस्वादान करने के लिए हमें भक्त होना होगा। कथा के उपरांत लखनऊ शहर भर से आये भक्तों ने एकादशी फलाहारी प्रसाद ग्रहण किया।