धनतेरस का शुभ संयोग बना रहेगा
लखनऊ। प्रदोष भगवान शिव को समर्पित व्रत है, जिसे हर महीने के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी पर रखा जाता है। इस दिन महाकाल की पूजा और उनके नामों का स्मरण करने से व्यक्ति के दुखों का समापन होता है और वह खुशहाल जीवन जीता है। शास्त्रों की मानें तो प्रदोष महादेव को प्रसन्न करने का सर्वश्रेष्ठ अवसर है और कार्तिक माह में यह व्रत 18 अक्तूबर को रखा जाएगा। इस दिन धनतेरस का शुभ संयोग बना रहेगा। ऐसे में इस दिन की पूजा से न केवल शिव जी बल्कि लक्ष्मी माता और कुबेर जी की विशेष कृपा भी प्राप्त होगी। कार्तिक माह के कृष्ण की त्रयोदशी तिथि 18 अक्तूबर को दोपहर 12 बजकर 18 मिनट से शुरू होगी। तिथि का समापन 19 अक्तूबर को दोपहर 1 बजकर 51 मिनट पर है। तिथि के मुताबिक 18 अक्तूबर को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। इस दिन शनिवार होने के कारण यह शनि प्रदोष होगा। इसके अलावा इस दिन धनतेरस का पर्व भी मनाया जाएगा।
प्रदोष व्रत शुभ योग
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर शिववास योग का संयोग बन रहा है। इसके साथ ही प्रदोष व्रत पर अभिजीत मुहूर्त का भी संयोग है। शिववास योग के दौरान भगवान शिव कैलाश पर नंदी की सवारी करेंगे। इन योग में भगवान शिव की पूजा करने से साधक की मनचाही मुराद पूरी होगी। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होगी।
शनि प्रदोष व्रत का महत्व
मान्यता है कि यह व्रत करने से शनि के बुरे प्रभाव से बचाव होता है। इस व्रत को करने से भक्तों को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। इसलिए इस दिन प्रदोष व्रत का लाभ उठाएं और भगवान शिव और शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त करें। ऐसा करने से आपको शिव और शनि की कृपा प्राप्त होगी. शनि प्रदोष व्रत एक खास मौका है जब आप अपनी मनोकामनाएं पूरी कर सकते हैं। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से विशेष फल मिलता है।
पूजा विधि
प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है, इसलिए सबसे पहले एक चौकी पर महादेव की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद प्रभु को वस्त्र अर्पित करें और शिवलिंग पर जल, दूध या पंचामृत से अभिषेक करें। महादेव को फल, मिठाई और चंदन लगाएं। इस दौरान बेलपत्र और शमी का फूल अवश्य रखें। इसके प्रभाव से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। अब शवि जी के आगे घी का दीपक जलाएं और धूपबत्ती भी जला लें। फिर शनि प्रदोष व्रत कथा का पाठ और करें और ऊँ हौं जूं स: ऊँ भुर्भव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। ऊवार्रुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊँ भुव: भू: स्व: ऊँ स: जूं हौं ऊँ।। मंत्र का स्मरण करें। अंत में शिव आरती करें और चूंकि इस दिन धनतेरस है, तो आप माता लक्ष्मी, कुबेर महाराज और शनि महाराज की आरती भी करें। यह शुभ होता है।





