यन्त्रों, औजारों व मशीनों की भी पूजा-अर्चना करते हैं
लखनऊ। सृष्टि के प्रथम वास्तुकार व शिल्पकला के अधिष्ठाता देव भगवान विश्वकर्मा की जयंती 17 सितम्बर को मनायी जाएगी। इस दिन कारखानों, फैक्ट्री, दुकानों व निर्माण स्थलों पर भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। लोग यन्त्रों, औजारों व मशीनों की भी पूजा-अर्चना करते हैं। कई सार्वजनिक स्थलों पर भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा स्थापित कर भव्य पूजा आयोजित की जाती है। ज्योतिषाचार्य ने बताया कि यह पूजा हर साल सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश करने पर होती है। उन्होंने बताया कि भगवान विश्वकर्मा देवी-देवताओं के शिल्पकार थे। सभी अस्त्र-शस्त्र व वाहनों का निर्माण विश्वकर्मा जी ने किया। उन्होंने द्वारिका इन्द्रपुरी, पुष्पक विमान, देवी- देवताओं भवन और दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुओं का निर्माण किया है। भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशूल, यमराज का कालदण्ड का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने किया है।
विश्वकर्मा पूजा विधि:
विश्वकर्मा पूजा के दिन आफिस, दुकान, वर्कशॉप, फैक्ट्री चाहे छोटे संस्थान हों या बड़े सभी की साफ सफाई करें। इस दिन सभी तरह के औजारों या सामान की पूजा करनी चाहिए। पूजा के लिए सर्वप्रथम पूजा स्थान पर कलश स्थापना करनी चाहिए। भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करनी चाहिए। इस दिन यज्ञ इत्यादि का भी आयोजन किया जाता है। पूजन में श्री विष्णु भगवान का ध्यान करना उत्तम माना गया है। इस दिन पुष्प, अक्षत लेकर मंत्र पढ़ें और चारों ओर अक्षत छिड़कें। इसके बाद हाथ में और सभी मशीनों पर रक्षा सूत्र बांधें। फिर भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करते हुए दीप जलाएं और पुष्प एवं सुपारी अर्पित करें। विधि विधान से पूजा करने पर पूजा के पश्चात भगवान विश्वकर्मा की आरती करें। भोग स्वरूप प्रसाद अर्पित करें, जिस भी स्थान पर पूजा कर रहे हों उस पूरे परिसर में आरती घुमाएं। पूजा के पश्चात विश्वकर्मा जी से अपने कार्यों में सफलता की कामना करें।
विश्वकर्मा पूजा का महत्व:
विश्वकर्मा पूजा के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साथ ही व्यापार में तरक्की और उन्नति प्राप्त होती है। इनकी पूजा करने से व्यक्ति में नई ऊर्जा का संचार होता है और व्यापार या निर्माण आदि जैसे कार्यों में आने वाली सभी समस्याएं और रुकावटें दूर होती हैं। मान्यताओं के अनुसार देवताओं के महल और अस्त्र-शस्त्र भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाए थे, इसलिए इन्हें निर्माण का देवता कहा जाता है। शास्त्रों में ऐसा भी कहा गया है कि ब्रह्माजी के निर्देश पर ही विश्वकर्मा जी ने इंद्रपुरी, त्रेता में लंका, द्वापर में द्वारिका और हस्तिनापुर, कलयुग में जगन्नाथ पुरी आदि का निर्माण किया था। इसके अलावा श्रीहरि भगवान विष्णु के लिए सुदर्शन चक्रए शिव जी का त्रिशूलए पुष्पक विमान, इंद्र का व्रज को भी भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाया था। पुष्पक विमान का निर्माण इनकी एक बहुत महत्वपूर्ण रचना मानी जाती है। सभी देवों के भवन और उनके उपयोग में आने वाली अस्त्र शस्त्रों का निर्माण भी विश्वकर्मा जी द्वारा की गई है। कर्ण का कवच या कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र हो या फिर भगवान शिव का त्रिशूल हो, ये सभी चीजें भगवान विश्वकर्मा के निर्माण का प्रभाव है।
सभी को करनी चाहिए विश्वकर्मा की पूजा:
ऐसा मान्यता है कि विश्वकर्मा जयंती के दिन उनकी पूजा सभी लोगों को करनी चाहिए क्योंकि इस सृष्टि में जो भी सृजन और निर्माण हो रहा है, उसके मूल में भगवान विश्वकर्मा ही हैं। उनकी पूजा करने से बिगड़े काम भी बनेंगे, कार्य नियत समय पर बिना विघ्न-बाधा के पूरे हो जाएंगे।
ऋगवेद में है भगवान विश्वकर्मा के महत्व का वर्णन:
ओड़िशा के पुरी मंदिर के लिए भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की विशाल मूर्तियों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया है। उन्होंने इंद्र का अस्त्र वज्र भी बनाया था। ऋगवेद में भगवान विश्वकर्मा की महिमा और महत्व का वर्णन किया गया है।
देव शिल्पी की उपाधि:
भगवान विश्वकर्मा ने कई भवनों, मंदिर की मूर्तियों आदि का निर्माण किया है। उनको देव शिल्पी की उपाधि प्राप्त है। कहा जाता है कि सृष्टि की रचना में विश्वकर्मा जी ने ब्रह्मा जी की सहायता की थी और संसार का नक्शा तैयार किया था। इसके अलावा उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका की रचना की थी।