लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय के लोक प्रशासन विभाग, कंज्यूमर वॉयस (नई दिल्ली) और कंज्यूमर गिल्ड (लखनऊ) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक कार्यशाला में जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों, सरकारी अधिकारियों, पर्यावरणविदों और नागरिक समाज संगठनों ने भारत में पारा युक्त थर्मामीटर और स्फिग्मोमैनोमीटर जैसे चिकित्सा उपकरणों के उपयोग को तत्काल प्रभाव से बंद करने की मांग की।
कार्यक्रम की मुख्य वक्ता, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) लखनऊ की डॉ. गीता यादव ने पारा से बने उपकरणों के मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि पारा यदि उपकरणों से रिस कर हवा में वाष्पीकृत हो जाए तो इससे फेफड़ों, गुर्दों और तंत्रिका तंत्र को गंभीर क्षति हो सकती है। विशेष रूप से बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए यह और भी घातक सिद्ध हो सकता है।

कार्यशाला में इस बात पर जोर दिया गया कि भारत ने मिनामाटा कन्वेंशन पर हस्ताक्षर कर यह वादा किया है कि वह पारे के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करेगा। इस दिशा में भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सहयोग से कार्य कर रहे हैं।
पर्यावरणविद् प्रो. डॉ. भरत राज सिंह ने कहा कि पारे के रिसाव और निपटान से जुड़ा खतरा न केवल तत्काल स्वास्थ्य समस्या है, बल्कि यह दीर्घकालीन पर्यावरणीय संकट को भी जन्म देता है। इसलिए सभी स्वास्थ्य सेवा केंद्रों को पारा रिसाव प्रबंधन प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए और कर्मचारियों को इसके लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता लोक प्रशासन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एन. एल. भारती ने की। प्रो. वैशाली सक्सेना और डॉ. एस. एच. चौहान सहित अन्य वक्ताओं ने डिजिटल और एनेरॉइड विकल्पों को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को अपनाएं जो न केवल किफायती हैं बल्कि सटीक भी हैं।
कंज्यूमर गिल्ड लखनऊ के अध्यक्ष अभिषेक श्रीवास्तव ने उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता फैलाने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा, यह पहल न केवल परिवारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।कंज्यूमर वॉयस, नई दिल्ली की प्रतिनिधि रिंकी शर्मा ने बताया कि स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र तेजी से पारा मुक्त हो रहा है और उपभोक्ताओं को भी इसमें अपनी भूमिका निभानी होगी।
कार्यशाला के अंत में शिक्षकों, छात्रों, गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों और अन्य उपस्थित लोगों ने पारे के किसी भी रूप का उपयोग न करने की शपथ ली। यह आयोजन भारत में पारा मुक्त स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की ओर एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है।