नई दिल्ली। शीर्ष अदालत ने 2018 के आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में शुक्रवार को बंबई उच्च न्यायालय के निर्णय के चार सप्ताह बाद तक के लिए टीवी ऐंकर अर्नब गोस्वामी और दो अन्य की अंतिरम जमानत की अवधि बढ़ा दी। न्यायालय ने कहा कि न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि फौजदारी कानून चयनात्मक तरीके से उत्पीड़न का हथियार नही बने।
न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने अर्नब गोस्वामी और दो अन्य को अंतरिम जमानत देने के 11 नवंबर के आदेश के विस्तृत कारण बताते हुए शुक्रवार को अपना 55 पेज का फैसला सुनाया। पीठ ने अनुच्छेद 226 के तहत जमानत देने के उच्च न्यायालय के अधिकार, प्राथमिकी रद्द करना और नागरिकों की स्वतंत्रता बरकरार रखने में अदालतों की भूमिका सहित अनेक पहलुओं पर अपने फैसले में विस्तार से टिप्पणी की और कहा, स्वतंत्रता की हुकूमत संविधान के ताने बाने से होकर गुजरती है।
पीठ ने अंतरिम जमानत की अवधि बढ़ाते हुए कहा, जिला न्यायपालिका से लेकर उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय का यह सुनिश्चित करना कर्तव्य है कि फौजदारी कानून नागरिकों के चयनात्मक उत्पीड़न का हथियार नहीं बने। रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक गोस्वामी, नीतीश सारदा और फीरोज मोहम्मद शेख को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले की अलीबाग पुलिस ने आर्कीटेक्ट और इंटीरियर डिजायनर अन्वय नाइक और उनकी मां को 2018 में आत्महत्या के लिए कथित रूप से उकसाने के मामले में चार नवंबर को गिरफ्तार किया था। आरोप है कि इन लोगो की कंपनियों ने नाइक की कंपनी को देय शेष धनराशि का भुगतान नही किया था।
पीठ ने अपने फैसले में कहा, आरोपियों को 11 नवंबर को प्रदान किया गया अंतरिम संरक्षण उच्च न्यायालय में लंबित कार्यवाही का निबटारा होने तक और इसके बाद उच्च न्यायालय के फैसले की तारीख से चार सप्ताह तक प्रभावी रहेगा ताकि अगर जरूरी हो तो वे सब या उनमें से कोई भी कानून के अनुसार राहत के लिए आगे कदम उठा सके।
पीठ ने कहा, अपराध की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करना निश्चित ही अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक स्तर पर पीड़ित के अधिकारों का संरक्षण करता है और इससे ज्यादा मूल स्तर पर कानून के अनुसार अपराध की जांच सुनिश्चित करके सामाजिक हित की रक्षा करता है।