नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की उस याचिका पर मंगलवार को सुनवाई पूरी कर ली जिसमें उन्होंने 2014 के चुनावी हलफनामें में अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का ब्योरा कथित तौर पर नहीं देने पर मुकदमें का सामने करने के शीर्ष अदालत के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ के समक्ष फडणवीस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि चुनाव लड़ने वाले अन्य उम्मीदवारों के लिए इस मुद्दे के दूरगामी परिणाम होंगे और न्यायालय को एक अक्टूबर 2019 के अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।
न्यायालय ने पिछले साल अपने फैसले में बंबई उच्च न्यायालय का फैसला निरस्त कर दिया था। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में फडणवीस को क्लीन चिट दे दी थी और कहा था कि वह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (आरपीए) के तहत कथित अपराध पर मुकदमें का सामना करने के हकदार नहीं हैं। बहस के दौरान रोहतगी ने कहा कि किसी उम्मीदवार के खिलाफ आपराधिक मामला दो सूरतों पर चलाया जा सकता है। पहला आरोप तय होने के बाद मामले की जानकारी नहीं देना और दूसरा दोषी ठहराए जाने की जानकारी नहीं देने पर।
उन्होंने पीठ से कहा, यह मेरे भाग्य को कैद कर लेगा। यह एक अहम प्रश्न है क्योंकि यह अनुच्छेद 21 को प्रभावित करता है। यह ऐसा मुद्दा है जिस पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला सतीश उइके की अपील पर सुनाया था। उन्होंने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी। उच्चतम न्यायालय ने उइके की याचिका पर 23 जुलाई 2019 को सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि फडणवीस द्वारा चुनावी हलफनामे में दो आपराधिक मामलों की जानकारी कथित तौर पर नहीं देने पर सुनवाई के दौरान फैसला होगा।
पीठ ने कहा था, हमारा सरोकार बहुत ही सीमित मुद्दे पर है कि क्या इस मामले में पहली नजर में जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 125 लागू होती है या नहीं। यह धारा मूल रूप से गलत हलफनामा दाखिल करने से संबंधित है और यदि कोई प्रत्याशी या उसका प्रस्तावक नामांकन पत्र के साथ लंबित आपराधिक मामलों के बारे में कोई जानकारी देने में विफल रहता है या उसे छुपाता है और यह साबित हो जाता है तो प्रत्याशी को छह महीने की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।
उइके ने कहा था कि भाजपा नेता ने दो आपराधिक मामलों का खुलासा नहीं करके हलफनामे में गलत जानकारी दी लेकिन इसके बावजूद निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने कहा कि इसमें पहली नजर में कोई मामला नहीं बनता है। उन्होंने कहा कि प्रत्याशी के लिए सभी आपराधिक मामलों की जानकारी देना कानूनी रूप से अनिवार्य है।