मिशन 2020: क्षेत्रीय और जातिगत समीकरण साधने की कोशिश

अभिषेक बाजपेयी

 

लखनऊ। बुधवार को हुए योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल में हुए पहले विस्तार को भारतीय जनता पार्टी के मिशन 2022 की तरफ एक नए कदम के तौर पर देखा जा रहा है। मंत्रिमंडल विस्तार में क्षेत्रीय और जातिये समीकरण साधते हुए, सरकार ने एक साफ संदेशा देने की कोशिश की है सिर्फ निष्ठावान और स्वच्छ छवि के लोगों को ही जगह दी जाएगी।

 

बुधवार के विस्तार के बाद अब योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल में मंत्रियों की कुल संख्या 56 हो गयी है। इसमें 27 अगड़े, 21 पिछड़े और सात अनुसूचित जाति के मंत्रियों के अलावा एक मुस्लिम मंत्री भी शामिल हैं। बुधवार को जिन 23 मंत्रियों को शपथ दिलायी गयी उनमें दो क्षत्रिय, छह ब्राह्मण, तीन वैश्य, एक गुर्जर, एक पाल, दो कुर्मी, दो जाट, एक राजभर, एक कश्यप और एक लोध के साथ अनुसूचित जाति के तीन मंत्री हैं। मार्च 2017 में योगी सरकार के शपथ ग्रहण में रमापति शास्त्री और प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल अनुसूचित जाति से कैबिनेट मंत्री बने थे। सांसद बनने के बाद बघेल के इस्तीफे से एक पद रिक्त था।

 

बुधवार को हुए विस्तार में कानपुर नगर के घाटमपुर की कमला रानी वरुण को कैबिनेट मंत्री बनाकर न केवल पार्टी ने यह सन्देश दिया है की निष्ठावान नेताओं को तरजीह दी जाएगी, बल्कि सरकार में अनुसूचित जाति का यह कोटा भरा गया है। स्थानीय स्तर से अपनी राजनीति की शुरूआत करने वाली और पासी समाज से आने वाली कमल रानी दो बार सांसद भी रह चुकी हैं। पासी समाज ने लोकसभा चुनाव में भाजपा का खुलकर साथ दिया था। मैनपुरी के भेगांव क्षेत्र के विधायक रामनरेश अग्निहोत्री सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के गढ़ में भाजपा का झंडा फेहरा चुके हैं। मुलायम की कर्मभूमि में पहली बार भेद लगाने के चलते उन्हें पहली ही बार सीधे कैबिनेट मंत्री बनने का मौका मिला। संगठनात्मक पृष्ठभूमि के अग्निहोत्री की कार्यकतार्ओं में भी पकड़ है। दूसरे रीता बहुगुणा जोशी के इस्तीफे से रिक्त हुई कैबिनेट में ब्राह्मण सीट को भी उनके जरिये भरा गया है।

 

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चार मंत्रियों ओमप्रकाश राजभर, धर्मपाल सिंह, अनुपमा जायसवाल और अर्चना पांडेय की छुट्टी करने में जहां उनके खिलाफ शिकायतों का संज्ञान लिया, वहीं कई लोगों की निष्ठा और समर्पण को भी महत्व दिया। महेंद्र सिंह ने ग्राम्य विकास विभाग के तबादले में जिस तरह की पारदर्शी व्यवस्था बनाई, उसका उन्हें कैबिनेट मंत्री के रूप में तोहफा मिला। दूसरे राज्यों में प्रभावी चुनावी प्रबंधन और लोकप्रियता की वजह से महेंद्र भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की भी पसंद बन गए। कैबिनेट मंत्री के रूप में प्रोन्नति पाने वाले सुरेश राणा मुख्यमंत्री के करीबी होने के साथ ही विपरीत परिस्थितियों के बावजूद गन्ना किसानों को राहत देने में कामयाब रहे। राणा ने विपक्षी दलों के दबाव के बाद भी गन्ने को बड़ा मुद्दा नहीं बनने दिया. गन्ने को लेकर कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ। राणा पश्चिम में हिंदू चेहरे के रूप में भी पहचाने जाते हैं।

 

पश्चिम के प्रभावी जाट चेहरा चौधरी भूपेंद्र सिंह ने पंचायती राज विभाग में शौचालय निर्माण में बेहतर भूमिका निभायी और संगठन से समन्वय बनाने के साथ ही विवाद से भी दूर रहे। भाजपा की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने जब विद्रोह करते हुए सरकार के लिए मुश्किल खड़ी की तो अनिल राजभर ने मोर्चा संभाला। राजभर बिरादरी के बीच वह भाजपा के सिंबल बन गए। लोकसभा चुनाव में राजभर ने चंदौली में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पार्टी ने उन्हें बनाके उनकी मेहनत का इनाम दिया है। सरकार में बेहतर कार्य करने के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से आने वाले नीलकंठ तिवारी राज्यमंत्री से प्रोन्नति पाने वाले अकेले मंत्री हैं। वह पूर्वांचल में ब्राह्मण चेहरे के रूप में भी उभार हैं।

 

इस विस्तार की खास बात यह जिन मंत्रियों के इस्तीफे हुए उनकी जाति से मंत्री जरूर बनाये गए हैं। वित्त मंत्री राजेश अग्रवाल के इस्तीफे के बाद मुजफ्फरनगर के कपिलदेव अग्रवाल को स्वतंत्र प्रभार देकर जातीय भरपाई की गई है। दूसरी बार के विधायक कपिलदेव पश्चिम में सक्रिय हैं। इसी तरह अनुपमा जायसवाल की जगह वाराणसी के रवींद्र जायसवाल को मौका दिया गया है। रवींद्र प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र से भी आते हैं। सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह योगी सरकार से हटे तो उनकी लोध बिरादरी के लाखन सिंह राजपूत को मौका मिल गया। अर्चना पांडेय को हटाये जाने के बाद ब्राह्मण चेहरे के रूप में अनिल शर्मा, आनन्द स्वरूप शुक्ला और चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय को शपथ दिलाने से बड़ा संदेश दिया गया है।

 

जहां तक भाजपा के सहयोगी दल, अपना दल के अध्यक्ष और सांसद अनुप्रिया पटेल के पति आशीष पटेल को मंत्री बनने की बजाये पार्टी ने अपने कुर्मी नेताओं को आगे किया है। यही वजह है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के संसदीय क्षेत्र मीरजापुर के मड़िहान क्षेत्र से उनके सजातीय रमाशंकर पटेल को मंत्री बनाया गया है। रमाशंकर बिरादरी में मजबूत पकड़ रखते हैं। प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह के अलावा मंत्री बनायी गईं नीलिमा कटियार भी कुर्मी हैं। वैसे मुकुट बिहारी वर्मा की  लगभय थी, लेकिन नेतृत्व ने कुर्मी बिरादरी को साधने में मुकुट बिहारी की कुर्सी बचा दी।

 

सिद्धार्थनगर जिले के इटवा क्षेत्र से पहली बार चुने गए सतीश द्विवेदी ने सपा सरकार में विधानसभा अध्यक्ष रहे माता प्रसाद पांडेय को चुनाव हराया था। स्वतंत्र प्रभार के ही मंत्री बनाये गए संतकबीरनगर के धनघटा विधायक श्रीराम चौहान तो अटल सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं। गोरखपुर मंडल से मुख्यमंत्री खुद हैं, जबकि इन दोनों मंत्रियों के जरिये उन्होंने बस्ती मंडल को प्रतिनिधित्व दिया है। आजमगढ़ मंडल में बलिया से आनन्द शुक्ल को मौका मिला है। वाराणसी से अनिल राजभर, नीलकंठ और रवींद्र जायसवाल का, जबकि विंध्याचल मंडल से रमाशंकर पटेल का प्रतिनिधित्व है। बुंदेलखंड से चंद्रिका उपाध्याय को मौका मिला तो कानपुर अंचल के कमल रानी वरुण, नीलिमा कटियार और अजीत पाल को मौका मिला है। उधर, पश्चिम और ब्रज से भूपेंद्र सिंह, अनिल शर्मा, महेश गुप्ता, विजय कश्यप, जीएस धर्मेश मंत्री बनाये गए हैं। लेकिन इन सब के बीच एक खास बात ये रही की बरेली  प्रतिनिधित्व खत्म हो गया। बरेली से दो मंत्री थे राजेश अग्रवाल और धर्मपाल सिंह दोनों इस्तीफा दे चुके हैं।

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