एक बार अंधकार ने भगवान से जाकर प्रार्थना की थी कि यह सूरज तुम्हारा, मेरे पीछे बहुत बुरी तरह से पड़ा हुआ है। मैं बहुत थक गया हूं।
सुबह से मेरा पीछा होता है और सांझ मुश्किल से मुझे छोड़ा जाता है। मेरा कसूर क्या है? कैसी दुश्मनी है यह? यह सूरज क्यों मुझे सताने के लिए मेरे पीछे दिन-रात दौड़ता रहता है? और रात भर में मैं दिनभर की थकान से विश्राम नहीं कर पाता हूं कि फिर सुबह सूरज द्वार पर आकर खड़ा हो जाता है।
फिर भागो फिर बचो। अनन्त काल से चल रहा है। अब मेरे धैर्य की सीमा आ गयी है और मैं प्रार्थना करता हूं कि इस सूरज को समझा दें। सुनते ही भगवान ने सूरज को बुलाया और कहा कि तुम अंधेरे के पीछे क्यों पड़े रहते हो? क्या बिगाड़ा है अंधेरे ने तुम्हारा? क्या है शत्रुता? क्या है शिकायत? सूरज ने हैरानी से पूछा- अंधेरा! अनन्त काल हो गया मुझे विश्व का भ्रमण करते हुए लेकिन अभी तक अंधेरे से मेरी मुलाकात नहीं हुई।
अंधेरे को मैं जानता ही नहीं। कहां है अंधेरा? आप उसे मेरे सामने बुला दें, तो मैं क्षमा भी मांग लूं और आगे के लिए पहचान लूं कि वह कौन है ताकि उसके प्रति कोई भूल न हो सके। इस बात को हुए भी अनंत काल हो गए। भगवान की फाइल में यह बात वहीं की वहीं पड़ी है। अब तक अंधेरे को सूरज के सामने नहीं बुला सके हैं। नहीं बुला सकेंगे। यह मामला हल नहीं होने का है।
सूरज के सामने अंधकार कैसे बुलाया जा सकता है? अंधकार की कोई सत्ता ही नहीं है, कोई अस्तित्व ही नहीं है। अंधकार की कोई पॉजिटिव, कोई विधायक स्थिति नहीं है। अंधकार तो सिर्फ प्रकाश के अभाव का नाम है। वह तो प्रकाश की गैर मौजूदगी है। वह तो एबसेंस है, वह तो अनुपस्थिति है। तो सूरज के सामने ही सूरज की अनुपस्थित को कैसे बुलाया जा सकता है? नहीं!
अंधकार को सूरज के सामने नहीं लाया जा सकता है। सूरज तो बहुत बड़ा है, एक छोटे से दीये के सामने भी अंधकार को लाना मुश्किल है। दीये के प्रकाश के घेरे में अंधकार का प्रवेश मुश्किल है। दीये के सामने मुठभेड़ मुश्किल है। प्रकाश है जहां, वहां अंधकार कैसे आ सकता है।