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अमेरिकी न्यायाधीश ने ट्रंप के एच-1बी वीजा पर प्रतिबंध के फैसले पर लगाई रोक

वाशिंगटन। हजारों भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) पेशेवरों को राहत देते हुए अमेरिका के एक संघीय न्यायाधीश ने लोकप्रिय एच-1बी वीजा सहित अन्य वर्क परमिट को अस्थाई रूप से प्रतिबंधित करने के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है। अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति ने संवैधानिक अधिकार से परे जाकर प्रतिबंध लगाया है। नदर्न डिस्ट्रिक्ट ऑफ कैलिफोर्निया के डिस्ट्रिक्ट जज जेफरी व्हाइट ने बृहस्पतिवार को यह आदेश जारी किया।

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय उत्पादक संघ, यूएस चेंबर ऑफ कॉमर्स, राष्ट्रीय खुदरा व्यापार संघ और टेकनेट, सांस्कृतिक आदान-प्रदान प्रायोजित करने वाली इंट्राक्स इंक के प्रतिनिधियों ने वाणिज्य मंत्रालय और आंतरिक सुरक्षा मंत्रालय के खिलाफ वाद दाखिल किया था। उत्पादकों के राष्ट्रीय संघ (एनएएम) ने कहा कि इस फैसले के तुरंत बाद वीजा संबंधी प्रतिबंध स्थगित हो गए हैं जो उत्पादकों को अहम पदों पर भर्ती से रोकते थे और ऐसे में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने, विकास और नवोन्मेष में वे संकट का सामना कर रहे थे।

उल्लेखनीय है कि ट्रम्प ने जून में शासकीय अदेश जारी किया था जिससे इस साल के अंत तक प्रमुख अमेरिकी और भारतीय प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किए जाने वाले एच-1बी वीजा, गैर कृषि मौसमी कामगारों को जारी किए जाने वाले एच-2बी वीजा, सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए जारी किए जाने वाले जे श्रेणी के वीजा और एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों में प्रबंधक तथा अन्य प्रमुख पदों पर विदेशी कर्मचारियों के लिए जारी होने वाले एल वीजा पर अस्थाई रोक लग गई थी।

राष्ट्रपति का तर्क था कि अमेरिका को अपने घरेलू कामगारों की नौकरी बचाने और सुरक्षित रखने की जरूरत है, खास तौर पर तब जब कोविड-19 महामारी की वजह से लाखों नौकरियां चली गई हैं। सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों और अन्य अमेरिकी कंपनियों के प्रतिनिधियों ने वीजा जारी करने पर लगी अस्थाई रोक का विरोध किया था।

एनएएम की वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं महाधिवक्ता लिंडा केली ने कहा कि प्रशासन द्वारा कुछ श्रेणियों के वीजा पर रोक लगाए जाने के फैसले के खिलाफ उत्पादक अदालत गए थे क्योंकि यह संकट के समय उद्योगों के हितों को कमतर करता है और कानून के विपरीत है।

आदेश में संघीय न्यायाधीश ने कहा कि राष्ट्रपति ने इस मामले में अपने अधिकारों से परे जाकर काम किया है। न्यायाधीश ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद-1 और दो सदियों से चली आ रही विधाई परंपरा एवं न्यायिक नजीर स्पष्ट करती है कि संविधान कांग्रेस में निहित है, न कि आव्रजन नीतियों को बनाने की शक्ति के साथ राष्ट्रपति में।

अदालत ने कहा, अगर यह तथ्य है कि दूसरे देशों से आने वाले आव्रजकों से विदेश संबंध निर्भर होता है और इसलिए संविधान के अनुच्छेद-2 के तहत राष्ट्रपति के अधिकारक्षेत्र में आता है तो इस संबंध में बाकी सभी कानून निरर्थक हो जाएंगे। न्यायाधीश व्हाइट का फैसला कोलंबिया के डिस्ट्रिक्ट जज अमित मेहता द्वारा अगस्त में दिए गए आदेश से अलग है जिसमें उन्होंने कहा था कि मामला विचाराधीन होने के कारण प्रतिबंध को रद्द करने का अधिकार उनके पास नहीं है।

गौरतलब है कि भारतीय आईटी पेशेवरों में एच-1बी वीजा की सबसे अधिक मांग है जो गैर आव्रजक श्रेणी का वीजा है। इसके जरिए विशेषज्ञता वाले पदों पर अमेरिकी कंपनियां विदेशियों को नौकरी देती हैं। अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियां इनपर निर्भर हैं क्योंकि हर साल वे इस वीजा के आधार पर भारत और चीन जैसे देशों के हजारों कामगारों की नियुक्ति करती हैं।

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