नई दिल्ली। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-गांधीनगर के अनुसंधानकर्ताओं ने एक अध्ययन में पाया है कि अंतर्निहित अंग-स्वाधीन प्रेरक स्मृतियां पक्षाघात पुनर्वास में मदद कर सकती हैं। आईआईटी-गांधीनगर के एसोसिएट प्रोफेसर प्रतीक मुथा के नेतृत्व में हुए अध्ययन से संबंधित रिपोर्ट पत्रिका प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज ऑफ यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका में प्रकाशित हुई है।
मुथा ने कहा कि बैले नर्तकी की घिरनी से लेकर सितार पर गमक तक दक्ष क्रियाएं नए गति पैटर्न सीखने और उन्हें नए माहौल के प्रति ढालने की क्षमता पर आधारित हैं। सीखने, भंडार रखने, क्रियाओं को संचालित करने और उन्हें लगातार सुधारने की क्षमता अनेक तंत्रिका संबंधी तंत्रों से संचालित है।
भारत के प्रधानमंत्रियों की सूची को याद करने जैसी चीजों का परिणाम एक ऐसी स्मृति बनने के रूप में निकलता है जिसे बाद में याद किया जा सकता है, प्रेरक ज्ञान का परिणाम भी प्रेरक स्मृति के रूप में निकलता है जो अंतत: ऊर्ध्ववर्ती गति प्रदर्शन में सक्षम बनाती है। अध्ययन में पाया गया कि इस तरह अंतर्निहित अंग-स्वाधीन प्रेरक स्मृतियां पक्षाघात पुनर्वास में मदद कर सकती हैं। अनुसंधानकर्ताओं की टीम में आदर्श कुमार, गौरव पंथी और रेचु दिवाकर भी शामिल थे।