तुलसीदास जी का साहित्य लोक तत्व से परिपूर्ण है : डॉ. हरिशंकर मिश्र

तुलसीदास, प्रेमचन्द एवं कथा सम्राट चंद्रधर शर्मा गुलेरी स्मृति समारोह

लखनऊ। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा गोस्वामी तुलसीदास, संत साहित्य मर्मज्ञ आचार्य परशुराम चतुवेर्दी, उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द एवं कथा सम्राट चंद्रधर शर्मा गुलेरी स्मृति समारोह के शुभ अवसर पर दिन बुध् को एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हिन्दी भवन के निराला सभागार लखनऊ में पूर्वाह्न 11.00 बजे से किया गया। दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण, पुष्पार्पण के उपरान्त वाणी वंदना श्रीमती गीता शुक्ला द्वारा प्रस्तुत की गयी। सम्माननीय अतिथि डॉ. हरिशंकर मिश्र, असित चतुवेर्दी, नरेन्द्र भूषण एवं डॉ. अलका पाण्डेय का स्वागत स्मृति चिह्न भेंट कर डॉ अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया।
डॉ. हरिशंकर मिश्र ने कहा- गोस्वामी तुलसीदास एक प्रेरणा पुरुष के रूप में हमारे सम्मुख हैं। तुलसीदास जी का जीवन काफी संघर्षमय था। तुलसीदास जी का साहित्य लोक तत्व से परिपूर्ण है। वे लोक सेवा भावना से ओत-प्रोत थे। उन्होंने अपनी रामकथा को गंगा से जोड़ने का प्रयास किया। साहित्य ऐसा होना चाहिए जो गंगा की भांति सभी का हितकारी हो। गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने आप को तीर्थराज बनाने का प्रयास किया। संत समाज को ऐसा कार्य करना चाहिए, जिससे वे लोक कल्याण कर सके। तुलसीदास जी ने अपने साहित्य में संत के लक्षणों की व्याख्या की है। कोई भी व्यक्ति वस्त्र व वाणी से नहीं बल्कि जो स्वभाव से संत हो वही सच्चा संत होता है।
असित चतुवेर्दी ने कहा- सरस्वती के उपासक कभी स्वर्गीय नही होते हैं। सरस्वती के साधना में लगे हुए लोग कभी स्वर्गीय नहीं होते है। आचार्य परशुराम चतुवेर्दी जी पेशे से वकील थे। वे वकालत से अधिक साहित्य साधनारत थे। आचार्य परशुराम चतुवेर्दी जी की उनकी पुस्तक उत्तरी भारत की संत परम्परा काफी चर्चित है। संत साहित्य पर शोध कार्य उनकी पुस्तकों के बिना पूर्ण नहीं हो सकता है। आचार्य परशुराम चतुवेर्दी जी का नाम संत कवियों में प्रमुखता से लिया जाता है। संत मरा क्या रोइये जो अपने घर को जाय की पंक्तियाँ उनके ऊपर चरितार्थ होती हैं।
नरेन्द्र भूषण ने प्रेमचन्द के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा करते हुए कहा-कुछ लोग ऐसे होते हैं, जहाँ जन्म लेते हैं वह स्थान धन्य हो जाता है। प्रेमचन्द का साहित्य आज भी प्रासंगिक है। प्रेमचन्द जी अपने लेखन की शुरूआत नबाब राय के नाम से की। प्रेमचन्द का साहित्य देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण है। प्रेमचन्द के साहित्य में सामाजिक कुरीतियों का व्यापक विरोध मिलता है। प्रेमचन्द उर्दू भाषा के अच्छे जानकार थे। उनकी रचनाओं में प्रेमा, सेवा सदन, गबन, गोदान, रंगभूमि, निर्मला, कायाकल्प, कर्मभूमि आदि प्रमुख हैं। उनकी रचनाओं में आदर्शवादी यथार्थ के तत्व विद्यमान हैं। प्रेमचन्द का साहित्य साहित्य जगत को दिशा व मार्ग दिखाता रहेगा।
डॉ. अलका पाण्डेय ने कहा चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी का साहित्य फलक बहुत बड़ा है। गुलेरी जी ने विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं से जुड़कर साहित्य सेवा की है। गुलेरी जी ने जो लिखा काफी महत्वपूर्ण लिखा है। चन्द्रधर शर्मा गुलेरी उसने कहा था लिखकर साहित्यिक जगत में अमर हो गये। गुलेरी जी ने कहानी विधा को काफी मार्गदर्शन किया। उनकी कहानियाँ प्रेम प्रसंग से परिपूर्ण हैं। गुलेरी जी की कहानियों में आंचलिकता के तत्व विद्यमान हैं। उन्होंने आंचलिक कहानियों में आंचलिक तत्वों का समावेश किया है। उसने कहा था कहानी प्रेम कथाओं में सर्वोपरि है।
इस अवसर पर तुलसी के पदों यथा रामचन्द्र कृपालु भजमन, गाइये गणपति जग वंदन, ठुमक चलत राम चन्द्र, मो सो कौन दीन तो सौ कौन दयाल की संगीतमय प्रस्तुति संगीत कला संस्थान के माध्यम से डॉ. पूनम श्रीवास्तव द्वारा की गयी। तबले पर डॉ. राजीव शुक्ला, हारमोनियम पर चन्द्रेश पाण्डे एवं बाँसुरी पर दीपेन्द्र कुमार द्वारा सहयोग किया गया। डॉ. अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उप्र हिन्दी संस्थान द्वारा कार्यक्रम का संचालन एवं संगोष्ठी में उपस्थित समस्त साहित्यकारों, विद्वत्तजनों एवं मीडिया कर्मियों का आभार व्यक्त किया गया।

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