एसएनए में 17 दिवसीय नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन तीन नाटकों का मंचन
लखनऊ। मंचकृति समिति संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश के सहयोग से आयोजित 17 दिवसीय नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन एसएनए के संत गाडगे प्रेक्षागृह में तीन नाटकों का मंचन किया गया जिसका निर्देशन संगम बहुगुणा व विकास श्रीवास्तव ने किया। नाट्य समारोह में सबसे पहले नाटक करवट बदलती जिंदगी का मंचन किया गया।
कहानी का सारांश-भारतीय संस्कृति सदा से ही बसुधैव कुटुंबकम का समर्थन करती है। जहां समाज में सबकी बेटियां साझा समझी जाती है। वहीं नीलिमा टिक्कू आज संकीर्ण मानसिकता के तहत बहुत कुछ बदलाव दिखाई दे रहे हैं। अपनी बहन-बेटी के साथ कोई आपत्तिजनक दुर्घटना हो जाये तो उसे खामोशी से सुलझाने की पुरजोर कोशिश की जाती है। वहीं पराये घर की बेटी पर बिन बात भी कीचड़ उछालने, उसका बहिष्कार करने से नहीं चूकते। समाज में हर तरह की मानसिकता वाले लोग हैं। युवा पीढ़ी में अब भी जहां कहीं ना कहीं यह पितृसत्तात्मक प्रवृत्ति जड़ जमाये हुए है, वहीं आज यही युवा पीढ़ी अपेक्षाकृत परिष्कृत हुई है और सोच की खिड़कियाँ खुली है। युवाओं की इसी सोच को दशार्ती यह कहानी बताती है कि संकीर्ण मानसिकता से परे किस तरह आज की युवा पीढ़ी सजग है। मंच-पर-मित्री दीक्षित ने अभिनय किया।
बिजनेस
बिसनेस नाटक का लेखन रत्ना कौल ने किया जिसमें कहानी उच्च स्तर पर बोट व धन प्राप्ति के लिए हो रहे घोटाले की उजागर करती है। चाचिकपुर गाँव के मुखिया हरसुख मिश्रा के घर के सामने खुले स्थान पर हर शाम गाँव के प्रबुद्ध जन इकट्ठा होकर भाँति भाँति की चचार्एँ करते। अध्यापक दशरथ प्रसाद केवल सप्ताहान्त में ही ऐसी बैठकों में सम्मिलित हो पाते। कुछ माह पहले ही उनका ट्रॉसफर निकटवर्ती जिÞले अकबरपुर हो गया था। पत्नी, पुत्री जानकी और बेटा लक्ष्मण प्रसाद चाचिकपुर में ही रह रहे थे। लाखन अत्यन्त चंचल तथा पड़ाई में उसका मन नहीं लगता था। गाँव में छोटी-मोटी चोरियाँ भी करने लगा था। सम्मान को पहुँचती ठेस परिवार के लिए असह्य हो गई थी। मंच-पर- अनवारुल हसन, भानु प्रकाश पाण्डेय, ममता शुक्ला, करन चान्त्रा, गुरुदत्त पाण्डेय एवं अन्य।
ढलानों के नीचे
ढलानों के नीचे की कहानी का सारांश में दूर्वा डॉक्टर उत्कर्षऔर सुलक्षणा की इकलौती बेटी थी। उसकी अच्छी परवरिश के लिए दोनों ने जान लगा दी थी। दोनों ही काम करते थे और व्यस्ततम थे। ऐसी परिस्थितियों में घर की देखभाल एक घरेलू पुराना नौकर करता था। अचानक उसने एक दिन दूरवा को पीछे से दबोच लिया और दुराचार की कोशिश की। उसी समय वहाँ सुबीर आ पहुंचा उसने उसे बचा लिया। सुबीर दूर्वा का मित्र था। इस घटना का दूर्वा के ऊपर बहुत प्रभाव पड़ा। वह हंसना बोलना, खाना-पीना, सोना जागना सब भूल गई। माता-पिता ने उसे सामान्य करने के लिए शहर बदल दिया। अब सुबीर अपनी नौकरी पर चला गया था। लेकिन इस बार पता नहीं क्या हुआ कि वह लौटा नहीं। आगे मंच पर गोपाल सिन्हा, काव्या मिश्रा, सोम गाँगुली, दीपक मेहरा, अजय भटनागर, डॉ. मालविका त्रिवेदी ने अभिनय किया।