विवाह और अन्य मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं
लखनऊ। देव उठनी एकादशी का व्रत सभी एकादशी व्रतों के बराबर फल देता है। यह पापों का नाश करता है और भक्तों को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद दिलाता है। यह दिन चातुर्मास के अंत का प्रतीक है, जिसके बाद विवाह और अन्य मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु चार माह बाद सुबह के समय जागते हैं। बीते आषाढ़ माह की देवशयनी एकादशी को भगवान विष्णु चार माह के लिए चिर निद्रा में चले गए थे। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष को जो एकादशी मनाई जाती है, उसे ही देव उठनी एकादशी कहते हैं। एकादशी तिथि 1 नवंबर की सुबह 9:11 बजे शुरू होगी और 2 नवंबर को सुबह 7:31 बजे तक रहेगी। इस तिथि पर भगवान विष्णु क्षीर सागर में अपनी योग निद्रा से जागेंगे। उदयातिथि के अनुसार, नवंबर में 1 तारीख को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी और इसी दिन व्रत भी रखा जाएगा।
कब शुरू होंगे मांगलिक कार्य
चार माह की लंबी निद्रा के बाद जब जागते हैं तो उसी के बाद से मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। देवउठनी एकादशी को ‘प्रबोधिनी एकादशी’ या ‘देवोत्थान एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन से चार माह से बंद मांगलिक कार्य जैसे शादी, मुंडन, गृह प्रवेश आदि का आरंभ हो जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से इस दिन व्रत करता है या पूजा पाठ करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। साथ ही व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है। वहीं, इस दिन पूजा करने से मां लक्ष्मी की भी विसेष कृपा बनी रहती है।
देव उठनी एकादशी का महत्व
एकादशी केवल भगवान विष्णु के जागने का दिन नहीं है, बल्कि यह सनातन धर्म में एक नए और शुभ समय की शुरूआत का प्रतीक है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से पूजा करने और व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
देवउठनी एकादशी पूजा विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। इस दिन विशेष रुप से पीले रंग के वस्त्र धारण करें। इसके बाद भगवान विष्णु और मां लक्ष्मा का ध्यान करें। पूजा स्थल को अच्छे से साफ करके भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। अब गंगाजल से उन्हें स्नान कराएं। अब पीला चंदन, पीले फूल, और पंचामृत का भोग लगाएं। इसके बाद दीपक जलाकर व्रत कथा सुने और अंत में आरती करके पूजा संपन्न करें।
देवउठनी के अगले दिन तुलसी विवाह
देवउठनी एकादशी के अगले दिन, यानी 2 नवंबर 2025 को तुलसी विवाह का आयोजन होगा। पंचांग के अनुसार द्वादशी तिथि सुबह 07:31 बजे से शुरू होकर 3 नवंबर को सुबह 05:07 बजे समाप्त होगी। इस दिन भक्तजन पूरे उत्साह के साथ भगवान शालिग्राम और तुलसी जी का प्रतीकात्मक विवाह कराते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो दंपत्ति नि:संतान होते हैं, उन्हें तुलसी विवाह कराने से संतान सुख की प्राप्ति होती है, और दांपत्य जीवन सुखमय होता है, साथ ही सौभाग्य में वृद्धि होती है।
नवंबर-दिसंबर में विवाह और मांगलिक मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य ने विवाह के लिए शुभ मुहूर्तों की जानकारी देते हुए बताया कि नवंबर और दिसंबर में शुभ कार्यों के लिए कई मुहूर्त उपलब्ध हैं नवंबर में विवाह मुहूर्त: 2, 3, 5, 8, 12, 13, 16, 17, 18, 21, 22, 23, 25 और 30 तारीखें शुभ हैं। दिसंबर में विवाह मुहूर्त: 4, 5, 6 तारीखें विवाह के लिए उत्तम हैं।
15 दिसंबर से शुरू होगा खरमास
मांगलिक कार्यों पर 15 दिसंबर से फिर एक माह के लिए विराम लगने जा रहा है। इसकी वजह यह है कि 15 दिसंबर को सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करने से खरमास प्रारंभ हो जाएगा, जो 13 जनवरी तक रहेगा। इस दौरान शादी समारोह सहित सभी मांगलिक कार्यों पर विराम रहेगा। ज्योतिषि विशेषज्ञ पं उमेश शास्त्री दैवज्ञ के अनुसार 15 दिसंबर से सूर्य की धनु संक्रांति आरंभ होगी। सूर्य की धनु संक्रांति का अर्थ है सूर्य का धनु राशि में प्रवेश करना। सूर्य का धनु राशि में परिभ्रमण एक माह रहता है। इसी एक माह में खरमास या मलमास की संज्ञा आती है। इस दौरान मांगलिक कार्यों पर विराम रहेगा। सूर्य वर्ष में दो बार मलमास या खरमास की श्रेणी में आते हैं, जिसमें धनु व मीन राशि मानी जाती है। सूर्य का धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करने पर मकर संक्रांति होगी। मकर में सूर्य के प्रवेश करते ही सूर्य का उत्तरायण माना जाता है और सूर्य के उत्तरायण से ही विवाह कार्य की पुन: शुरूआत हो जाती है। छह माह का उत्तरायण काल, उत्तरायण का समय अलग-अलग प्रकार के धार्मिक मांगलिक कार्यों का विशेष माना जाता है। इस समय में धर्म तथा पुण्य से जुड़े विशिष्ट कार्य किए जाते हैं। 16 जनवरी से पुन: विवाह की शुरूआत हो जाएगी। 16 जनवरी से छह मार्च तक विवाह के 12 विशेष मुहूर्त होंगे।
खाटू श्याम मंदिर में मनेगा जन्मोत्सव
लखनऊ। श्री खाटू श्याम जन्मोत्सव का दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन 1, 2 नवंबर को बीरबल साहनी मार्ग मार्ग स्थित श्री श्याम मन्दिर में बड़ी हषोल्लास के साथ मनाया जाएगा।
श्री श्याम परिवार के महामंत्री रूपेश अग्रवाल ने बताया कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी पर देवउठनी एकादशी के साथ खाटू श्याम का जन्मोत्सव मनाया जाता हैं इस अवसर पर लाखों की संख्या में श्री श्याम भक्त में दर्शन के लिए श्री श्याम मन्दिर पहुंचते हैं। श्याम जन्मोत्सव पर मंदिर में भीड़ को मद्देनजर रखते हुए श्याम जन्मोत्सव दो दिन मनाया जाएगा। पहले दिन 1 नवंबर को सुबह से भक्तों के लिए मन्दिर के कपाट खोल दिया जाएगा। इस बार श्याम दरबार की सजावट को विशेष रूप से भव्य और आकर्षक बनाया जा रहा है। कलकत्ता से आए कलाकारों द्वारा समुद्री शीप एवं शंख का उपयोग करके भव्य दरबार सजाया गया है। बीते 17 दिन से लगे हुए हैं। इसमें लगभग 10 क्विंटल सीप और शंख का उपयोग किया गया है। समुद्र से निकले नेचुरल सीप, शंख और मोतियों से सजाया जा रहा है। इस साल सजावट की समुद्री सीप, मोती और शंख दरबार रखी गई है।
मंदिर के कोषाध्यक्ष आशीष अग्रवाल ने बताया कि मंदिर को सजाने के लिए कोलकाता से एंथोनीयम फूल और अन्य खस फूल बेंगलुरु से मंगवाए जा रहे है। दरबार में थमार्कोल और बंस की खपच्चियों का प्रयोग किया गया हैं।



 
                                    

