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समाज में मैत्री का भाव

संसार में मनुष्य ने आज तक जो आश्चर्यजनक उन्नति की है और समस्त प्राणियों को अपने वश में करके वह जो प्रकृति का स्वामी बन बैठा है उसका मूल सहयोग की प्रवृत्ति में ही है। इसके फल से उसमें एकता शक्ति, मिलन शक्ति, सामाजिकता, मैत्री की भावना आदि का आविर्भाव हुआ और उसकी शक्ति बढ़ती गयी। मनुष्य ने आपस में एक-दूसरे को सहयोग दिया, अपनी स्थूल और सूक्ष्म शक्तियों को आपस में मिलाया, इस मिलन से ऐसी-ऐसी चेतनाएं, सुविधाएं, उत्पन्न हुई जिनके कारण उसके उत्कर्ष का मार्ग दिन-दिन बढ़ता गया।

दूसरे प्राणी जो साधारणत: शारीरिक दृष्टि से मनुष्य की अपेक्षा कहीं सक्षम थे, इस मैत्री भावना, सम्मिलन योग्यता के अभाव में जहां के तहां पड़े रहे, वे अति प्राचीनकाल में जैसे थे वैसे ही अब भी बने हुए हैं। मनुष्य की तरह उन्नति का सुविस्तृत क्षेत्र वे प्राप्त न कर सके। संघ शक्ति भी एक महान शक्ति है। उसे भले या बुरे जिस भी मार्ग में, जिस भी कार्य में लगाया जायेगा उधर ही आश्चर्यजनक सफलता के दर्शन होंगे। मनुष्यों में भी अनेक देश, जाति, वर्ग, समूह हैं। उनमें वे ही आगे बढेÞ हैं, वे ही समुन्नत हुए हैं जिनमें अपेक्षाकृत अधिक सहयोग भावना है।

व्यक्तिगत रूप से विचार किया जाये तो भी हमें वे ही व्यक्ति समृद्ध मिलेंगे जिन्होंने किसी भी उपाय से दूसरों का अधिक से अधिक सहयोग प्राप्त किया है। कोई भी सेठ साहूकार बिना मुनीम, कारीगर, मजदूर, एजेण्ट, आदि के सहयोग के बिना समृद्धशाली नहीं हो सकता। चोर, उचक्के, ठग डाकू, लुटेरे, जुआरी आदि को भी जो सफलताएं मिलती हैं उसमें उनके दल की संघशक्ति ही प्रधान कार्य करती है।

बुरे लोगों द्वारा बुरे कर्म के लिए आपसी घनिष्ठ संघ बनाकर अवांछनीय साहसिक कार्य होते हुए हम अपने चारों ओर नित्य ही देखा करते हैं, ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं। पर साथ ही यह भी तथ्य सामने है कि श्रेष्ठ लोगों ने श्रेष्ठ कार्यों में बड़ी-बड़ी महान सफलताएं आपसी संगठन के कारण प्राप्त की हैं। व्यक्तिवाद के स्थान पर समूहवाद की प्रतिष्ठापना का महत्व अब समस्त संसार पहचानता जा रहा है। पृथक-पृथक रूप से छोटे-छोटे प्रयत्न करने में व्यक्ति का अपव्यय अधिक और काम कम होता है।

परन्तु सामूहिक सहयोग से ऐसी अनेकों चेतनाओं और सुविधाओं की उत्पत्ति होती है जिसके द्वारा बड़े-बड़े कठिन कार्य सफल हो जाते हैं। सम्मिलित खेत, सम्मिलित रसोई, सम्मिलित व्यापार, सम्मिलित संस्था आदि अनेकों दिशाओं में सम्मिलन का विस्तृत क्षेत्र है। इस प्रवृत्ति की वृद्धि के साथ मानव की सुख शांति और सफलताओं में भी अभिवृद्धि होगी।

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