नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र के दिशा-निर्देशों पर गौर करते हुए बुधवार को कहा कि प्राधिकारियों को कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के घर के बाहर पोस्टर और साइनेज (निर्देशक या चेतावनी संकेतक) नहीं लगाने चाहिए। शीर्ष अदालत ने साथ ही कहा कि यदि योज्ञ प्राधिकारी आपदा प्रबंधन कानून के तहत विशेष निर्देश जारी करते हैं, तो इस प्रकार के पोस्टर विशेष मामलों में ही लगाए जा सकते हैं। न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली पीठ ने कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के घरों के बाहर पोस्टर नहीं चिपकाने का निर्देश दिए जाने का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान यह कहा।
न्यायमूर्ति आर एस रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह भी पीठ में शामिल थे। पीठ ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि केंद्र ने पहले ही दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं और इसलिए राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को इस प्रकार के पोस्टर नहीं लगाने चाहिए। केंद्र ने पहले शीर्ष अदालत से कहा था कि दिशा-निर्देशों में कोविड-19 मरीजों के घर के बाहर पोस्टर लगाने संबंधी कोई निर्देश नहीं दिया गया है और पोस्टर लगाने का मकसद किसी को कलंकित करने की मंशा नहीं हो सकता।
केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा शीर्ष अदालत में दायर हलफनामे का जिक्र करते हुए तीन दिसंबर को पीठ को बताया था कि दिशा-निर्देशों में पोस्टर चिपकाने की अनिवार्यता का जिक्र नहीं है। याचिकाकर्ता कुश कालरा की ओर से पेश हुए वकील ने शीर्ष अदालत में कहा था कि कोविड-19 से संक्रमित मरीजों के घर के बाहर पोस्टर लगाने संबंधी कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किया गया है, लेकिन हकीकत इसके विपरीत है।
न्यायालय ने एक दिसंबर को मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि कोविड-19 मरीजों के मकान के बाहर एक बार पोस्टर लग जाने पर उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार होता है और यह जमीनी स्तर पर एक अलग हकीकत बयान करता है। मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा था, उसके दिशा-निर्देशों में संक्रमित लोगों के घर के बाहर पोस्टर या साइनेज लगाने संबंधी कोई निर्देश नहीं दिया गया है। मेहता ने कहा था कि कुछ राज्य संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए अपने स्तर पर ऐसा कर रहे हैं।