लखनऊ। मैं एक मां हूं और मां के कोई सपने नहीं होते। अश्विनी अय्यर तिवारी निर्देशित पंगा के इस डायलॉग से हर वो औरत खुद को जुड़ा हुआ पाएगी, जिसने अपने घर-परिवार और बच्चों के लिए अपने सपनों को भुलाकर अपनी पहचान तक खो दी हो।
फिर फिल्म में एक संवाद और आता है, जहां नायिका अपने पति से कहती है, तुमको देखती हूं तो बहुत खुशी होती है, इसे बेटे को देखती हूं, तो खुशी होती है, मगर खुद को देखती हूं, तो खुश नहीं हो पाती, और उसके बाद शुरू होती है नायिका की अपने अस्तित्व की जंग और उसमें खुद को श्रेष्ठ साबित कर पाने की जद्दो-जहद।
जया निगम कंगना रनौत एक समय कबड्डी की नैशनल प्लेयर और कैप्टन रही है, मगर अब वह 7 साल के बेटे आदित्य उर्फ आदि यज्ञ भसीन के बेटे की मां और प्रशांत जस्सी गिल की पत्नी है। जया अपनी छोटी सी दुनिया में खुश है। कबड्डी ने उसे रेलवे की नौकरी दी है और उसकी जिंदगी घर, बच्चे और नौकरी की जिम्मेदारियों के बीच गुजर रही है। फिर एक दिन घर में एक ऐसी घटना घटती है कि जया का बेटा आदि उसे 32 साल की उम्र में कबड्डी में कमबैक करने के लिए प्रेरित करता है। पहले जया पति प्रशांत के साथ मिलकर कमबैक की प्रैक्टिस का झूठा नाटक करती है, मगर इस प्रक्रिया में उसके दबे हुए सपने फिर सिर उठाने लगते हैं।
अब वह वाकई इंडिया की नैशनल टीम में कमबैक करके अपने स्वर्णिम दौर को दोबारा जीना चाहती है। उसके इस सफर में उसका पति और बेटा तो साथ है ही, उसकी मां नीना गुप्ता, बेस्ट फ्रेंड मीनू रिचा चड्ढा जो कबड्डी कोच और प्लेयर भी है, उसे हर तरह का सपॉर्ट देती है। निर्देशक के रूप में अश्विनी अय्यर तिवारी की खूबी यह है कि उन्होंने भोपाल जैसे छोटे शहर की कामकाजी औरत और उसके मध्यम वर्गीय परिवार को परदे पर जिन बारीकियों के साथ चित्रित किया है, उससे कहानी को बल मिलता है। अश्विनी जया, मीनू और मां नीना गुप्ता के चरित्रों के जरिए महिला सशक्तिकरण की बात करती हैं।
एक दृश्य में जया कहती है, हर बार औरत से ये क्यों पूछा जाता है कि उसे करियर छोड़ने के लिए पति या घर ने मजबूर किया। यह उसकी अपनी चॉइस भी तो हो सकती है। असल में अश्विनी पंगा के जरिए कहना चाहती हैं कि औरत को अपनी चॉइस से पंगा लेने का अधिकार दिया जाए। अश्विनी ने मानवीय रिश्तों की बुनावट के साथ कबड्डी जैसे खेल के थ्रिल को भी बनाए रखा है। निखिल मल्होत्रा और अश्विनी अय्यर तिवारी के लिखे संवाद चुटीले हैं।
जय पटेल की सिनेमटॉग्रफी दर्शनीय है और बल्लू सलूजा ने फिल्म को सही अंदाज में काटा है। जज्बाती दृश्यों में कंगना ने मेलोड्रामा करने के बजाय उसे इस टीस के साथ जिया है कि आपकी आंखें नम हुए बिना नहीं रह पातीं। हाउसवाइफ और कबड्डी प्लेयर दोनों ही पहलुओं को उन्होंने खूब जिया है। रिचा चड्ढा का अभिनय फिल्म में राहत का काम करता है। बिहारी एक्सेंट में बोले गए उनके संवाद और बॉडी लैंग्वेज भरपूर मनोरंजन करते हैं। उनके और कंगना के बीच के दृश्यों की केमिस्ट्री देखते बनती है। सहयोगी पति की भूमिका में जस्सी गिल ने सहज अभिनय किया है। कंगना के साथ उनकी जोड़ी अच्छी लगती है।