नई दिल्ली। सरकार द्वारा हाल में लाए गए कृषि संबंधी तीन कानूनों का समर्थन करने वाले या विरोध करने वालों में से आधे से अधिक किसानों को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। यह बात गांव कनेक्शन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में सामने आई है। सर्वेक्षण द इंडियन फार्मर्स पर्सेप्शन आफ द न्यू एग्री लॉज में यह बात सामने आई कि इसका विरोध करने वाले 52 प्रतिशत में से 36 प्रतिशत को कानूनों के बारे में जानकारी ही नहीं है।
सर्वेक्षण में यह बात भी सामने आई कि कृषि कानूनों का समर्थन करने वाले 35 प्रतिशत में से लगभग 18 प्रतिशत को इसके बारे में जानकारी नहीं है। नए कृषि कानून अन्य चीजों के अलावा किसानों को अपनी उपज खुले बाजार में बेचने की आजादी देते हैं। गांव कनेक्शन द्वारा जारी किए गए एक बयान के अनुसार, आमने-सामने का यह सर्वेक्षण तीन अक्टूबर से नौ अक्टूबर के बीच देश के 16 राज्यों के 53 जिलों में किया गया। सर्वेक्षण में उत्तरदाताओं के रूप में 5,022 किसानों को शामिल किया गया।
द रूरल रिपोर्ट 2: द इंडियन फार्मर्स पर्सेप्शन ऑफ द न्यू एग्री लॉज़ के तौर पर जारी सर्वेक्षण के अनुसार, उत्तरदाता किसानों (57 प्रतिशत) के बीच इन नए कृषि कानूनों को लेकर सबसे बड़ा डर यह है कि वे अब अपनी फसल उपज खुले बाजार में कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर होंगे, जबकि 33 प्रतिशत किसानों को डर है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था समाप्त कर देगी।
इसके अलावा, 59 प्रतिशत उत्तरदाता किसान चाहते हैं कि एमएसपी प्रणाली को भारत में एक अनिवार्य कानून बना दिया जाए। मध्यम और बड़े किसानों की तुलना में सीमांत और छोटे किसानों का एक बड़ा वर्ग, जिसके पास पांच एकड़ से कम भूमि है, इन कृषि कानूनों का समर्थन करता है। बयान में कहा गया है, दिलचस्प है कि उत्तरदाता किसानों में से आधे से अधिक (52 प्रतिशत) द्वारा कृषि कानूनों का विरोध करने के बावजूद (जिनमें से 36 प्रतिशत को इन कानूनों के बारे में जानकारी नहीं), लगभग 44 प्रतिशत उत्तरदाता किसानों ने कहा कि मोदी सरकार किसान समर्थक है।
वहीं लगभग 28 प्रतिशत ने कहा कि यह किसान विरोधी है। इसके अलावा एक अन्य सर्वेक्षण सवाल पर काफी किसानों (35 प्रतिशत) ने कहा कि मोदी सरकार किसानों का समर्थन करती है, जबकि लगभग 20 प्रतिशत ने कहा कि यह निजी कार्पाेरेट या कंपनियों का समर्थन करती है। संसद के मानसून सत्र के दौरान तीन कृषि विधेयक पारित किए गए थे जिसके बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 27 सितम्बर को उन्हें मंजूरी दी जिसके बाद ये कानून बन गए।