नक्सलवाद बड़ी चुनौती

कितने जवान शहीद हुए हैं इसकी सही जानकारी अभी सामने नहीं आयी है, क्योंकि अभी भी कई जवान गायब हैं, लेकिन जिस तरह नक्सलियों ने एक हमले में 24 से अधिक जवानों को शहीद कर दिया और 50 के कारीब घायल हो गये, उससे इस बात का अनुमान तो लगाया ही जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में नक्सली संकट अभी भी उतना ही गंभीर है जितना एक दशक पहले था।

नक्सल समस्या के खत्मे के लिए सघन तलाशी, सलवा जुडूम जैसे तमाम प्रयास हो चुके हैं लेकिन देश के एक बड़े हिस्से में विशेषकर महाराष्ट्र, ओडिसा, बंगाल , झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में यह समस्या अभी भी गंभीर बनी हुई है। सीमा पर अशांति की बात तो समझ में आती है क्योंकि पाकिस्तान जैसा बदमाश देश लगातार आतंकियों को प्रशिक्षित कर भारत के साथ छद्म युद्ध कर रहा है। लेकिन नक्सल समस्या देश के अंदर की बात है और इसका इतने लंबे समय तक बने रहना दुर्भाग्यपूर्ण है।

नक्सली समय-समय पर सुरक्षा बलों पर बड़े हमले करके अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं और सरकार के पास घटना के बाद लकीर पीटने के सिवा कोई और चारा नहीं बचता। छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुआ नक्सली हमला तो इसलिए भी और गंभीर है कि गरीब 2000 जवान नक्सलियों की खोजबीन के लिए निकले थे और इन्हीं में से करीब 700 जवानों को एक पहाड़ी के पास घेरकर नक्सलियों ने एके-47, राकेट लांचर और अन्य घातक हथियारों से हमला किया जिसमें इतनी बड़ी शहादत हुई।

नक्सलियों की ढिठाई देखिए कि इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने के बाद जब शहीदों के शव उठाने के लिए रेस्क्यू टीम गयी तो उन पर भी हमला बोल दिया और इसमें भी एक जवान घायल हो गया। यह दुस्साहसिक वारदात इस बात का सबूत है कि नक्सली जंगलों में कमजोर नहीं हुए हैं बल्कि जब वे कुछ कमजोर हो जाते हैं तो कुछ समय के लिए अपनी गतिविधियों को रोक देते हैं और संगठित होकर फिर बड़ी वारदात को अंजाम देते हैं।

पिछले वर्षों में नक्सलियों की सघन तलाशी, खुफिया सूचनाओं के आधार पर टारगेटेड हमले और छत्तीसगढ़ में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जन जागरुकता के जरिए नक्सलियों को खत्म करने के लिए सलवा जुडूम जैसे अभियान चलाये गये हैं। ऐसे में अभियानों में कुछ नक्सली मारे गये हैं, कुछ समर्पण भी हुए हैं लेकिन नक्सलियों का संगठन कमजोर हुआ हो ऐसा कहना बहुत कठिन है। इसलिए सरकार को नक्सलियों पर प्रभावी कार्रवाई के साथ ही इस समस्या के समाधान के लिए बातचीत की खिड़की भी खोलनी चाहिए।

हाल के वर्षों में भारत सरकार को प्रभावी कार्रवाई और राजनीतिक संवाद के जरिए पूर्वोत्तर के कई राज्यों में उग्रवाद की समस्या को खत्म करने में उल्लेखनीय सफलता मिली है। बड़ी संख्या में उग्रवादी आत्म समर्पण कर राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल हुए हैं और सरकार ने उनका पुनर्वास कर सामाजिक जीवन जीने का मौका दिया है। अब ऐसे ही प्रयास अगर नक्सली समस्या पर काबू पाने के लिए किया जाता है तो यहां भी सुखद परिणाम मिल सकता है। इसलिए सरकार को सुरक्षा बलों के आपरेशन के साथ ही राजनीतिक संवाद की गुंजाइश भी तलाशनी चाहिए।

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