चैरिटी नहीं, बच्चों का हक है मिड डे मील

हाल ही में तीन वीडियो राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खी बने- एक से मालूम हुआ कि मिड-डे मील की दाल में मरा हुआ चूहा निकला, जिससे अनेक छात्र बीमार हो गये, दूसरे से मालूम हुआ कि बच्चों को सूखी रोटी नमक के साथ परोसी गई और तीसरे में यह दिखाया गया कि एक लीटर दूध बाल्टीभर पानी में मिलाया गया, 80 छात्रों को पिलाने के लिए, जो उस दिन स्कूल में उपस्थित थे।

गौरतलब है कि मिड-डे मील योजना के तहत एक छात्र को 150 एमएल दूध देना होता है। ये तीनों घटनाएं उत्तर प्रदेश के स्कूलों की हैं, लेकिन इस प्रकार की चिंताजनक खबरें समय-समय पर देशभर से आती रहती हैं। दो दशक पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश से मिड-डे मील योजना गरीब छात्रों में कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए शुरू की गई थी। यह अपने किस्म की विश्व में सबसे बड़ी योजना है और इसे काफी सराहा गया है।

हालांकि इन वीडियो से मिड-डे मील योजना की हकीकत सामने आ जाती है, लेकिन स्थितियों में कोई बदलाव नहीं आता है। हर हादसे पर अधिकारिक प्रतिक्रिया समान होती है- दोषियों को कड़ी सजा दी जायेगी, वीडियो बनाने वाले को तलाश किया जाये और उसे ‘सबक सिखाया जाये। फिर बात आयी-गयी हो जाती है। मसलन, छह वर्ष पहले बिहार में एक भयंकर घटना हुई थी, जिसमें मिड-डे मील खाने के बाद 23 बच्चों की मौत हो गई थी। ग्रामीण बिहार में हर किसी को वह हादसा याद है, लेकिन यह केस किस चरण में है, किसी को नहीं मालूम।

ध्यान रहे कि इस संदर्भ में जांच से मालूम हुआ था कि कुकिंग के लिए जो तेल प्रयोग किया गया था वह उस कैन में रखा गया था जो मूलत: कीटनाशक रखने के लिए था। इस कै न को सही से साफ किये बिना उसमें कुकिंग आयल रख दिया गया था। बहरहाल, जब यह केस मीडिया की दिलचस्पियों में नहीं रहा तो धूल पड़ने लगी। स्कूल प्रबंधकों के विरुद्घ दर्ज किया गया आपराधिक मामला भी अब तक पूर्ण नहीं हुआ है। फूड कुकिंग व वितरण की नीतियों में भी कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।

मिड-डे मील से जुड़ी जो चिंताजनक खबरें प्रकाश में आती हैं उन्हें तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। एक है खराब व निम्नस्तरीय भोजन का परोसा जाना जिससे फूड प्वाइजनिंग या कभी-कभी मृत्यु भी हो जाती है। दूसरा भ्रष्टाचार से संबंधित हैं, जैसा कि दूध में पानी मिलाने या नमक-रोटी परोसने से जाहिर है। अंतिम यह है कि जाति आधारित भेदभाव है। फूड जातिप्रथा का महत्वपूर्ण हिस्सा है, इसलिए यह आश्चर्य नहीं है कि अनेक स्कूलों में बच्चों को जाति के आधार पर अलग-अलग बैठाया जाता है। बहुत से मामलों में पैरेंट्स अपने बच्चों के लिए घर से टिफिन भेजते हैं क्योंकि स्कूल में कुक निम्न जाति से संबंधित है।

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