सिनेमा में मनोज कुमार के योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा : अनिल रस्तोगी

-अभिनेता के निधन से लखनऊ के कलाकारों में शोक की लहर, दी शृद्धाजंलि

लखनऊ। भारतीय अभिनेता और फिल्म निर्देशक मनोज कुमार का शुक्रवार सुबह निधन हो गया। वे 87 साल के थे। उन्हें अपनी देशभक्ति फिल्मों के लिए जाना जाता था। उनकी देश प्रेम वाली फिल्मों के लिए उन्हें ‘भारत कुमार’ के नाम से भी जाना जाता था। उन्होंने कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में अंतिम सांस ली। इस खबर के बाद राजधानी लखनऊ के कलाकारों सहित पूरे देश में शोक की लहर है। शहर के जानेमाने अभिनेता व रंगकर्मी अनिल रस्तोगी ने कहा कि भारतीय सिनेमा में मनोज कुमार के योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। उनके नाम एक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और अलग-अलग श्रेणियों में सात फिल्मफेयर पुरस्कार शामिल हैं। भारतीय कला में उनके अपार योगदान के सम्मान में सरकार ने उन्हें 1992 में पद्म श्री से सम्मानित किया। उन्हें 2015 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मनोज कुमार के निधन पर वरिष्ठ रंगकर्मी व अभिनेता सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ ने कहा, महान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित, हमारे प्रेरणास्रोत और भारतीय फिल्म उद्योग के ‘शेर’ मनोज कुमार जी अब हमारे बीच नहीं रहे। यह फिल्म उद्योग के लिए बहुत बड़ी क्षति है और पूरी इंडस्ट्री उन्हें याद करेगी।
सूर्य मोहन ने आगे बताया कि एक दिन मनोज कुमार काम की तलाश में फिल्म स्टूडियो में टहल रहे थे कि उन्हें एक व्यक्ति दिखा। मनोज ने बताया कि वो काम की तलाश कर रहे हैं, तो वो आदमी उन्हें साथ ले गया। उन्हें लाइट और फिल्म शूटिंग में लगने वाले दूसरे सामानों को ढोने का काम मिला। धीरे-धीरे मनोज के काम से खुश होकर उन्हें फिल्मों में सहायक के रूप में काम दिया जाने लगा। फिल्मों के सेट पर बड़े-बड़े कलाकार अपना शॉट शुरू होने से बस चंद मिनट पहले पहुंचते थे। ऐसे में सेट में हीरो पर पड़ने वाली लाइट चेक करने के लिए मनोज कुमार को हीरो की जगह खड़ा कर दिया जाता था।
एक दिन जब लाइट टेस्टिंग के लिए मनोज कुमार हीरो की जगह खड़े हुए थे। लाइट पड़ने पर उनका चेहरा कैमरे में इतना आकर्षक लग रहा था कि एक डायरेक्टर ने उन्हें 1957 में आई फिल्म फैशन में एक छोटा सा रोल दे दिया। रोल छोटा जरूर था, लेकिन मनोज कुछ मिनट की एक्टिंग में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे। उसी रोल की बदौलत मनोज कुमार को फिल्म कांच की गुड़िया (1960) में लीड रोल दिया गया। पहली कामयाब फिल्म देने के बाद मनोज ने बैक-टु-बैक रेशमी रुमाल, चांद, बनारसी ठग, गृहस्थी, अपने हुए पराए, वो कौन थी जैसी कई फिल्में दीं।

सिनेमा की बहुत बड़ी क्षति : मालिनी अवस्थी
मनोज कुमार के निधन पर लखनऊ की जानीमानी लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि मनोज कुमार के निधन से सिनेमा की बहुत बड़ी क्षति है, आगे मालिनी अवस्थी ने कहा कि मनोज कुमार जी ने अपनी करियर में कई फिल्मों का निर्देशन और अभिनय किया, जिनमें उपकार, पूरब और पश्चिम, कर्मयुद्ध जैसी फिल्में शामिल हैं। इनके लिए उन्हें पद्म श्री और दादा साहब फाल्के जैसी कई पुरस्कारों से नवाजा भी गया है। मनोज कुमार ने अपने करियर की शुरूआत साल 1975 में आई फिल्म फैशन (1957) में एक छोटे से किरदार से की। हालांकि, उन्हें असली पहचान 1962 में रिलीज हुई फिल्म हरीयाली और रास्ता से मिली. अभिनय के बाद उन्होंने निर्देशन में भी हाथ आजमाया. इसकी शुरूआत उन्होंने 1965 की फिल्म शहीद से की, जिसकी कहानी स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के जीवन पर आधारित उसके बाद उन्होंने 1967 की फिल्म उपकार बनाई, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर बनाई थी फिल्म
मनोज कुमार के कलाकारों के साथ-साथ राजनेताओं से भी अच्छे संबंध थे। साल 1965 में भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ था और इस युद्ध के बाद ही मनोज कुमार ने लाल बहादुर शास्त्री से मुलाकात की, जिसमें उन्होंने अभिनेता से युद्ध से होने वाली परेशानियों पर एक फिल्म बनाने के लिए कहा। हालांकि, उन दिनों तक अभिनेता को फिल्म बनाने का अनुभव नहीं था। इसके बावजूद अभिनेता ने ‘जय जवान जय किसान’ से संबंधित ‘उपकार’ फिल्म बनाई, जिसे दर्शकों द्वारा खूब पसंद किया गया। हालांकि, इस फिल्म को खुद लाल बहादुर शास्त्री नहीं देख पाए थे। ताशकंद से लौटने के बाद लाल बहादुर शास्त्री इस फिल्म को देखने वाले थे। लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया।

फिल्म ने मनोज कुमार को दिया भारत कुमार नाम
उपकार 1967 की सबसे बड़ी फिल्म थी। फिल्म का गाना मेरे देश की धरती सोना उगले.. आज भी सबसे बेहतरीन देशभक्ति गानों में गिना जाता है। फिल्म में मनोज कुमार का नाम भारत था। फिल्म के गाने की पॉपुलैरिटी देखते हुए मनोज कुमार को मीडिया ने भारत कहना शुरू कर दिया और फिर उन्हें भारत कुमार कहा जाने लगा। मनोज कुमार ने अपने निर्देशन में बनी फिल्म क्रांति (1981) में दिलीप कुमार को डायरेक्ट किया था। उपकार लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर बनी थी, लेकिन वे इसे देख नहीं सके। 1966 में शास्त्री जी ताशकंद (उज्बेकिस्तान) के दौरे पर गए थे। वे लौटने के बाद फिल्म उपकार देखते, लेकिन ताशकंद में ही इंडो-पाकिस्तान वॉर में शांति समझौता साइन करने के अगले दिन 11 जनवरी 1966 को उनकी मौत हो गई। उनकी मौत के एक साल बाद 11 अगस्त 1967 को फिल्म रिलीज हुई। शास्त्री जी को फिल्म न दिखा पाने का अफसोस ताउम्र मनोज कुमार को रहा।

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