तबलीगी जमात की गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध के लिए न्यायालय में पत्र याचिका

नई दिल्ली। एक शख्स ने तबलीगी जमात की गतिविधियों पर तत्काल प्रभाव से पूर्ण प्रतिबंध लगाने के अनुरोध के साथ प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे को मंलवार को एक पत्र याचिका भेजी है। दिल्ली निवासी अजय गौतम ने इस पत्र याचिका में भारत में मरकज की आड़ में कोरोना वायरस संक्रमण फैलाने की कथित साजिश का आरोप लगाया है और उसकी जांच का काम केन्द्रीय जांच ब्यूरो को सौंपने का निर्देश केन्द्र और दिल्ली सरकार को देने का अनुरोध किया है।

गौतम ने दिल्ली नगर निगम कानून के प्रावधानों के तहत इस संगठन के निजामुद्दीन स्थित भवन को गिराने का निर्देश दिल्ली सरकार को देने का भी अनुरोध किया है। गौतम ने इस पत्र याचिका को रिट याचिका के रूप में विचार करने का अनुरोध प्रधान न्यायाधीश से किया है। दिल्ली के निजामुद्दीन पश्चिम इलाके में पिछले महीने तबलीगी जमात के मुख्यालय में धार्मिक आयोजन हुआ था जिसमे कम से कम नौ हजार लोगों ने हिस्सा लिया था।

स्वास्थ मंत्रालय ने सोमवार को कहा था कि कोरोना वायरस के संक्रमण के चार हजार से ज्यादा मामलों में से कम से कम 1,145 मामलों का संबंध तबलीगी जमात के आयोजन से रहा है। पत्र में पुलिस और स्थानीय प्रशासन के उन अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है जो 50 से अधिक व्यक्तियों के एक स्थान पर एकत्र होने सबंधी दिल्ली सरकार के आदेशों पर अमल करने में विफल रहे। बाद में यह संख्या घटाकर 20 कर दी गई थी। पत्र याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि 12 से 15 मार्च के दौरान इस आयोजन में दूसरे देशों के ऐसे अनेक नागरिकों ने हिस्सा लिया था जो कोरोना वायरस से संक्रमित थे।

जमीअत उलेमा-ए-हिन्द ने छह अप्रैल को उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि दिल्ली में तबलीगी जमानत के आयोजन की आड़ में मीडिया का एक वर्ग सांप्रदायिक कटुत पैदा कर रहा है। याचिका में फर्जी खबरों पर रोक लगाने और इस तरह की खबरों के प्रचार प्रसार के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्देश केन्द्र को देने का अनुरोध किया गया था।

जमीअत उलेमा-ए-हिन्द और उसके कानूनी प्रकोष्ठ के सचिव ने अपने वकील एजाज मकबूल के माध्यम से कहा था कि तबलीगी जमात से संबंधित दुर्भाग्यपूर्ण घटना का इस्तेमाल पूरे मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने के लिए हो रहा है। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने याचिका में कहा है कि इस तरह से एक समुदाय को बदनाम किए जाने से मुसलमानों की जिंदगी और उनकी आजादी को गंभीर खतरा पैदा हो गया है और इससे संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त जीने के अधिकार का हनन हो रहा है।

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