जम्मू-कश्मीर पर सरकार की तैयारियों को जो ड्रामा और थ्रिलर कहते थे, छेड़छाड़ पर आग लगाने की बात करते थे, सस्पेंस खत्म करने की मांग पर बाजिद थे, वे सरकार के इरादों से पर्दा उठते ही सदमे में हैं। भाजपा सरकार ने कश्मीर पर आजादी के बाद का सबसे बड़ा फैसला ले लिया। सुविचारित रणनीति और सांविधानिक होशियारी के साथ सरकार ने वह कर दिखाया है, जिसकी उम्मीद कल्पनाओं में भी करना कठिन था। मोदी ने एक बार फिर बड़े फैसले कर बाग-बाग कर दिया। संप्रभुता की सीमा में ही भारत और कश्मीर के बीच दीवार बनी धारा 35ए, जिससे छेड़छाड़ पर जल उठने, तिरंगे को कंधा न देने, कश्मीर खो देने जैसी बेशुमार धमकियां मिल रही थीं, वह धारा 35ए बिना कुछ किए ही धराशायी हो गयी। भारत सरकार के इस फैसले से पूरे देश में जश्न है। कुछ नेता और पार्टी जरूर हिन्दुस्तान के सेंटीमेंट के खिलाफ खड़े होकर अपनी जड़ों में मट्ठा डाल रहे हैं।
हां कश्मीर में अलगाववादी और मुख्यधारा की पार्टियां सदमे में हैं। उनके इस दुख के पीछे निहित स्वार्थ है, जनता का दर्द नहीं है। दरअसल कश्मीर में यह स्थिति आयी ही इसीलिए कि स्थानीय पार्टियों और नेताओं ने कश्मीर को बेरहमी से लूटा। कश्मीर के विकास के लिए भारत सरकारने जो धन दिया उसे चंद परिवारों, छुटभैये नेताओं और एनजीओ की शक्ल में अलगाववादी खा गये। नेताओं व अलगाव वादियों ने अकूत दौलत बनायी, अपने बच्चों को विदेश में पढ़ाया और सेटेल किया जबकि कश्मीरियों को अशिक्षित रखने, गरीब रखने और भारत की मुख्यधारा से काटने का काम किया। यह उदण्डता, लूट-खसोट, धमकी और गद्दारी के सुर कोई भी राष्ट्रभक्त सरकार बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। इसलिए मोदी के नेतृत्व में भारत अब्दुल्लाह की ब्लेकमेलिंग और नेहरू के अति उदारवाद को पीछे छोड़ आगे बढ़ गया। सरकार ने कश्मीर में धारा 370 और 35ए ही नहीं खत्म किया बल्कि कश्मीर के राज्य के दर्जे को भी खत्म कर दिया।
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक में राज्य को दो हिस्सो में बांटकर लद्दाख और जम्मू कश्मीर को केन्द्र शासित क्षेत्र बनाने का प्रावधान है। जम्मू-कश्मीर को केन्द्र प्रशासित क्षेत्र बनाने का फैसला संभवत: इसीलिए कि इस संवेदनशील, सीमावर्ती और परमाणु दुश्मनों से घिरे क्षेत्र को ऐसे नेताओं के हवाले नहीं छोड़ा जा सकता है जो अलगाव की भाषा बोलते हैं। केन्द्र ने कश्मीर से आतंक के सफाये के लिए ही केन्द्र शासित क्षेत्र बनाया है ताकि पुलिस, कानून व्यवस्था और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे सीधे भारत सरकार के नियंत्रण में रहें। सरकार ने शांति स्थापित होने के बाद राज्य के दर्जे को बहाल करने का संकेत भी दिया है, जो ठीक भी है। यह फैसला राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता के साथ ही डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी से लेकर उन हजारों शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि भी है जिन्होंने कश्मीर के लिए बलिदान दिया। इस साहसिक, दूरदर्शी और निर्णायक फैसले से मोदी-शाह की मजबूत नेता की छवि और पुख्ता हुई है। कश्मीरी नेताओं और अलगाव वादियों का बात-बात पर धमकी देने का तिलिस्म भी अब टूट गया है।