जनरल सुलेमानी की हत्या के बाद बदले की धमकी दे रहे ईरान ने अमरीकी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाकर मिसाइलें दाग दी हैं। ईरान के मिसाइल हमले के साथ अमरीका और ईरान युद्ध के और निकट आ गये। अमरीका खाड़ी में तीन दशक से अधिक समय से लड़ रहा है। कुवैत को इराक के मुक्त कराने, फिर सद्दाम हुसैन के सफाया करने और उसके बाद आईएसआईएस के खिलाफ अमरीका ने लड़ाइयां लड़ी और जीती हैं।
अमरीका के सैन्य आकार, आर्थिक ताकत और रक्षा प्रौद्योगिकी को देखकर ऐसा सोचना भी ठीक नहीं होगा कि ईरान युद्ध में अमरीका को परास्त कर देगा। संभवत: ईरान के पास भी इतना हौसला नहीं होगा। लेकिन जब अमरीका ने एक बार ईरानी जनरल को मार दिया है तो, ईरान के शासकों पर भी दबाव था कि वह इसका बदला ले। जिस तरह सुलेमानी के जनाजे में लोगों की भीड़ उमड़ी, अमरीका से बदला लेने के नारे लगे, जनता ने बदले का दबाव बनाया, संभवत: इसी दबाव के कारण ईरान ने अमरीकी ठिकानों पर मिसाइलें दागी।
लेकिन जिस तरह ईरान बढ़ चढ़कर अमरीका को नुकसान पहुंचाने के दावे कर रहा है और अमरीका इनकार कर रहा है, उससे स्पष्ट है कि ईरान युद्ध नहीं चाहता। उसने घोषणा भी कर दी है कि उसका बदला पूरा हो गया। अगर ईरान अमरीका को नुकसान पहुंचाने का दावा करके जन दबाव को कम करता है, तो यह गलत नहीं है। गौर तलब है कि बालाकोट हमले के बाद अपनी शर्मिंदगी छिपाने के लिए पाकिस्तानी सेना ने भी भारत की हवाई सीमा का उल्लंघन किया था। इसमें उसको नुकसान भी हुआ, लेकिन महज इतने भर से पाक सेना पाकिस्तानियों के बदले के दबाव को साधने में सफल रही और भारत के साथ युद्ध करने से साफ बच निकली।
पाक सरकार और सेना ने बड़ी चालाकी से दो विमानों को मार गिराने, दो पायलटों को पकड़ने जैसे हवाई दावे किये और अपनी शर्मिंदगी कम करने में सफल रही। कुछ ऐसी ही टैक्टिस ईरान कर रहा है। अमरीकी सैन्य बेस पर हमले के बाद ईरान ने साफ कहा है कि वह युद्ध नहीं चाहता है। ईरान के राजदूत ने भारत के शांति प्रयासों का स्वागत करने की भी बात कही है, जो इस बात का संकेत हो सकता है कि ईरान चाहता हो कि भारत जैसे भरोसेमंद देश सुलह का प्रयास करें ताकि युद्ध टल जाये।
यह भारत के लिए गौरव और बड़े अवसर की भी बात है जब वह ईरान और अमरीका के बीच मध्यस्थता कर संभावित युद्ध को टालने का प्रयास करे। इसमें भारत के भी आर्थिक और कूटनीतिक हित सधेंगे क्योंकि खाड़ी युद्ध से भारत और भारतीयों को भारी नुकसान की आशंका है। यूएस-ईरान का वर्तमान टकराव अगर युद्ध में तब्दील होता है तो इसमें अमरीका, ईरान, इजराइल, सऊदी अरब, यूएई और पीछे से रूस भी शामिल हो सकता है। संयोग से इन सभी देशों के साथ भारत के कूटनीतिक संबंध बहुत मधुर हैं। इनके शासकों से पीएम मोदी के निजी रिश्ते भी अच्छे हैं। ऐसे में अगर भारत युद्ध टालने की मंशा से सुलह कराने का प्रयास करता है, इसमें सभी पक्षों का भारत पर पूर्ण भरोसा होगा।