स्वच्छता का महत्व

हमारी अच्छी आदतें हमें स्वस्थ रखकर सुजीवन प्रदान करने के साथ ही अच्छे विचारों को उत्पन्न करने में भी मददगार होती हैं। स्वच्छता ऐसा ही एक गुण है। आपका घर वह स्थान है, जिसके वातावरण में आप पलते हैं, वायु पाते हैं, संसर्ग से प्रभावित होते हैं। प्रति दिन हमारा 14-15 घंटे का जीवन घर में ही व्यतीत होता है।

घर की चहारदीवारी, कमरों, फर्नीचर, वस्त्र तथा विभिन्न स्थानों पर जो समय हम व्यतीत करते हैं, उनसे हमारी आदतों और स्वास्थ्य का निर्माण होता है। घर जितना ही स्वच्छ और सुव्यवस्थित होगा, उससे उतनी ही स्वच्छ वायु तथा आनन्द प्राप्त हो सकेगा। दुकान और ऑफिस के वातावरण का प्रभाव गुप्त रूप से पड़ता रहता है। मान लीजिए आप तम्बाकू, शराब, गांजा, भांग, चरस अथवा जूते की दुकान करते हैं। इन वस्तुओं की बदबू निरन्तर आपके स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती रहती है।

अत: हमें चाहिए कि हम अपने घर, दुकान या ऑफिसों को खिलौनों की तरह साफ-स्वच्छ रखें। स्वच्छ घर में रहने वाले की आत्मा प्रसन्न रहती है। आप स्वच्छ धुले हुए वस्त्र पहन कर देखें। मन कितना खिला रहता है। उसी प्रकार सफेद पुता हुआ कमरा, स्वच्छ फर्नीचर, स्वच्छ वस्त्र, स्नान से स्वच्छ शरीर आत्मा को प्रसन्न करने वाले हैं। स्वच्छ रखकर हम अपने घ्ज्ञर के सौंदर्य की वृद्धि करते हैं और चीजों के जीवन को बढ़ा लेते हैं। हमें आंतरिक शान्ति प्राप्त होतीहै7 सफाई प्रकृति का अंग बन जाने से सवत्र सौंदर्य की सृष्टि करती है।

ऑफिस घर और दुकान में छोटी-बड़ी असंख्य वस्तुएं होती हैं। इनमें कुछ ऐसी होती हैं, जिनका नित्य प्रयोग होता है, तो कुछ ऐसी होती हैं जो देर से निकलती हैं और काम में आती हैं। कुशल व्यक्ति अपने घर, दुकान या ऑफिस की वस्तुओं की व्यवस्था इस प्रकार करते हैं कि आवश्यकता पड़ते ही, तुरंत जरूरत की चीज मिल जाती है। ग्राहक आकर जिस छोटी वस्तु की मांग करता है, चतुर दुकानदार एक क्षण में उसे प्रस्तुत कर देता है। घर में दवाई से लेकर सुई, डोरा, आलपिन, तक एक क्षण में मिल जानी चाहिए।

ऑफिस की फाइल का कोई भी कागज जरा सी देर में अफसर के सन्मुख आना चािहए। पुस्तकालय में जो पुस्तक मांगी जाये तुरन्त पाठक को प्राप्त होनी चाहिए। अव्यवस्थित दुकानदार, अफसर या परिवार का मुखयिा उस व्यक्ति की तरह है जो उर्द, मूंग, मसूर गेहूं जो इत्यादि भिन्न-भिन्न अनाजों को एक साथ मिश्रित कर लेता है और आवश्यकता के साथ उसको पृथक-पृथक करने में व्यर्थ शक्ति का क्षय करता है। वह न गेहूं निकाल सकता है न उर्दू न मूंग और यदि निकालता भी तो उस समय जब उसके हाथ से अवसर निकल जाता है।

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