प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सोमवार को व्यवस्था दी कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कानून के तहत जमानत की अर्जी या अपील पर एक समय सीमा के भीतर सुनवाई हो। उच्च न्यायालय ने कहा कि इसके लिए सरकारी वकील को इस संबंध में नोटिस जारी होने की तिथि से सात दिन पूरे होने पर संबद्ध पीठ के समक्ष जमानत की अर्जी पेश की जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति अजय भनोत की पीठ ने कहा कि जमानत की अर्जी को तेजी से आगे बढ़ाया जाना चाहिए और उचित एवं निश्चित समय सीमा के भीतर सुनवाई के लिए इसे अदालत के समक्ष पेश किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, जहां कानून के तहत पीड़ित व्यक्ति के अधिकारों की हर समय रक्षा की जानी है, जमानत की अर्जीाअपील के संबंध में नोटिस को आगे बढ़ाने में राज्य द्वारा अनुचित विलंब नहीं किया जा सकता और ना ही पीड़ित व्यक्ति जमानत याचिका पर सुनवाई को अनिश्चित काल के लिए टलवा सकता है।
एससी/एसटी कानून के विभिन्न प्रावधानों पर गौर करने के बाद अदालत ने कहा कि जमानत के संबंध में नोटिस की जानकारी पीड़ित व्यक्ति को देना सरकार का दायित्व है। एक जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत के संज्ञान में यह बात लाई गई कि आरोपी की जमानत की अर्जी में अनुचित विलंब किया जा रहा है। इसके पीछे बहाना बनाया जाता है कि पीड़ित व्यक्ति को नोटिस नहीं मिला या पीड़ित व्यक्ति हाजिर नहीं हुआ।
जमानत की अर्जी के संबंध में नोटिस राज्य के अधिकारी को देने के सात दिन में इस अर्जी पर सुनवाई का निर्देश देते हुए अदालत ने कहा कि इस बारे में नोटिस जारी होने के सात दिन की अवधि के दौरान पुलिस के अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि सरकारी वकील को उचित जानकारी उपलब्ध करा दी जाए जिससे वह सुनवाई के दौरान अदालत की मदद कर सके। यह निर्देश एससी/एसटी कानून के तहत आरोपी अजीत चौधरी नाम के एक व्यक्ति द्वारा दाखिल जमानत की अर्जी पर सुनवाई के दौरान पारित किया गया। चौधरी को अदालत द्वारा इस आधार पर जमानत प्रदान की गई कि इसी मामले में सह आरोपी को पहले ही जमानत मिल चुकी है।