किसानों के साथ संवाद तो करिए सरकार

अजीब तमाशा है, आप किसानों के हितैषी हैं, आप अगले दो सालों में किसानों की आय दोगुना करना चाहते हैं, आपका दावा है कि देश में पहली बार किसानों का दुख दर्द समझने वाली सरकार, केंद्र में आयी है। इसके बावजूद आप न तो किसानों की सुनेंगे और न ही किसानों से बात करेंगे, क्या यही लोकतंत्र है?

दिल्ली के चारों तरफ हरियाणा और पंजाब के किसान बॉर्डर में जमा हैं। वे दिल्ली पहुंचकर लोकतांत्रिक तरीके से प्रदर्शन करना चाहते हैं। वे केंद्र सरकार द्वारा कृषि सुधार के लिए बनाये गये तीन कानूनों- फार्मर्स प्रोड्यूस एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फेसिलिटेशन) एक्ट, द फार्मर्स (एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट आॅफ प्राइज एसोरेंस एंड फार्मर सर्विसेज एक्ट तथा द एसेंशियल कमोडिटीज (अमेंडमेंट) एक्ट, का विरोध कर रहे हैं।

केंद्र सरकार कहती है कि ये तीनों कानून किसानों की बेहतरी के लिए हैं और किसान कहते हैं कि इन कानूनों के चलते वे कंगाल हो जाएंगे। ऐसे में क्या केंद्र सरकार का यह दायित्व नहीं है कि वह किसानों के जिम्मेदार प्रतिनिधियों से बातचीत करके अपनी ठोस बातों और वायदों के जरिये यह भरोसा दिलाये कि जो वह कह रही है, वैसा ही होगा?

अगर केंद्र का दावा है कि इन कानूनों के बाद किसी भी किसान की फसल को बेचने के लिए सरकार की एमएसपी व्यवस्था खत्म नहीं होगी तो फिर सरकार अपने इस कथन को विश्वसनीय बनाने के लिए क्यों नहीं इस दावे को कानूनन बना देती है? सरकार का अगर वास्तव में इरादा किसानों की भलाई, उनकी बेहतरी है, तो यह कौन सा तरीका है कि वह किसानों से न तो बात करेगी और न ही उन्हें शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात कहने का मौका देगी।

केंद्र सरकार का पता नहीं इरादा क्या है? हो सकता है वह वाकई जैसा कहा जा रहा है, वैसी ही सोच रखती हो। वह किसानों की हमदर्द हो और किसानों की माली हालत को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्घ हो, लेकिन जिस तरह से सरकार किसानों के साथ पेश आ रही है, वह तो इस कहे गये के सर्वथा उलट है। अगर वाकई सरकार किसानों की हमदर्द है,उनकी आय को अगले दो सालों में ईमानदारी से दोगुना करने की कोशिश कर रही है तो फिर किसानों के साथ इस तरह से पेश क्यों आ रही है, जैसे किसान, किसान न होकर केंद्र सरकार की विपक्षी राजनीतिक पार्टियां हों।

जरा देखें तो कि किसानों को दिल्ली में न घुसने देने के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार ने क्या किया है? दिल्ली के उन सभी बॉर्डरों को न केवल सील कर दिया गया है बल्कि जिस जगह से दूसरे प्रांतों के किसान दिल्ली में घुसना चाहते हैं, उन सभी जगहों पर गड्ढे खुदवा दिये गये हैं।

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