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ड्रोन बना आतंकियों का नया हथियार, बढ़ी सुरक्षा एजेंसियों की चिंता

नई दिल्ली/श्रीनगर । जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों की रणनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, अब आतंकवादी संगठनों की ओवर ग्राउंड वर्कर (OGW) नेटवर्क पर निर्भरता घटती जा रही है और उसकी जगह ड्रोन तकनीक ने ले ली है। यह बदलाव क्षेत्र में चल रही असमान युद्ध नीति का नया अध्याय बनकर उभरा है।

अधिकारियों ने बताया कि कश्मीर, किश्तवाड़ और राजौरी के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में छिपे आतंकवादी ड्रोनों की मदद से सुरक्षाबलों की गतिविधियों पर नजर रख रहे हैं। यह घटनाक्रम हाल के कुछ आतंकवाद-रोधी अभियानों में अपेक्षित सफलता नहीं मिलने का एक प्रमुख कारण बताया जा रहा है।

सिर्फ निगरानी ही नहीं, कुछ मामलों में ड्रोन के माध्यम से आतंकियों को सूखा राशन व अन्य जरूरी सामान पहुंचाने की भी सूचना मिली है। यह आतंकियों के लिए एक लॉजिस्टिक सपोर्ट सिस्टम की तरह काम कर रहा है, जिससे उनका लंबे समय तक टिके रहना आसान हो जाता है।

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI इस तकनीक का उपयोग न केवल घुसपैठ के रास्ते तय करने के लिए कर रही है, बल्कि सीमा पर सेना की तैनाती, उसकी ताकत और कमज़ोरियों का आकलन करने के लिए भी कर रही है।

मई 2025 के तीसरे सप्ताह में, पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) में ISI अधिकारियों और प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के शीर्ष कमांडरों के बीच हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में, ड्रोन निगरानी को घुसपैठ की नई रणनीति का अहम हिस्सा बनाने पर जोर दिया गया। इस बैठक में स्थानीय निवासियों को गाइड के रूप में इस्तेमाल करने और लॉन्चिंग पैड्स को स्थानांतरित करने की भी योजना बनाई गई।

भारत की ओर से मई के पहले सप्ताह में ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत PoK में आतंकियों के 9 ठिकानों को ध्वस्त किया गया था। विशेषज्ञों का मानना है कि ड्रोन आधारित रणनीति, पाकिस्तान की ओर से उसी ऑपरेशन के जवाब में अपनाई गई नई कार्ययोजना का हिस्सा है। ISI अब भारत से संभावित संघर्ष की स्थिति को ध्यान में रखते हुए भूमिगत बंकरों का निर्माण भी कर रही है।

अधिकारियों ने बताया कि आतंकवादी संगठनों द्वारा ड्रोन का पहला सैन्य उपयोग इस्लामिक स्टेट (ISIS) ने इराक के मोसुल में किया था। वहां बम गिराने और टोह लेने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया था। अब वही तकनीक दक्षिण एशिया में भी आतंकवाद का उपकरण बन चुकी है।

एसोसिएशन ऑफ द यूनाइटेड स्टेट्स आर्मी (AUSA) की एक रिपोर्ट में कहा गया है,एक बार जब तकनीक का पिटारा खुल गया, तो आतंकी संगठनों ने इसे हथियार के रूप में अपनाने में देर नहीं की।रिपोर्ट में आगे कहा गया कि आतंकी संगठन बीते संघर्षों से सबक ले रहे हैं और लगातार अपनी रणनीतियां बदल रहे हैं।

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