नहीं चाहते गैर सरकारी संगठन उच्च न्यायिक सेवा नियमों को चुनौती दें: न्यायालय

नयी दिल्ली।  उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि वह नहीं चाहता कि व्यस्त रहने वाले गैर सरकारी संगठन एनजीओ उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा नियमों के प्रावधानों को चुनौती दें और उनके बजाए वह असंतुष्ट उम्मीदवारों की बात सुनना चाहेगा। ये नियम सभी श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम योज्ञता नियत करते हैं। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने तीन सितंबर को पारित आदेश में कहा, संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत हम विशेष अनुमति याचिका स्वीकार नहीं करना चाहते। विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है।

गैर सरकारी संगठन संविधान बचाओ ट्रस्ट की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक कुमार शर्मा ने कहा कि उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा नियमों के नियम 18 में सामान्याअनुसूचित जातिाअनुसूचित जनजाति सभी श्रेणियों के अभ्यर्थियों के लिए एक न्यूनतम योज्ञता निर्दिष्ट है और इसलिए इससे आरक्षण का उद्देश्य ही निष्प्रभावी हो जाता है। जनहित याचिका को रद्द करने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को एनजीओ ने चुनौती दी है। पीठ ने कहा, संविधान बचाओ ट्रस्ट क्या है, एक एनजीओ? हम नहीं चाहते कि कोई व्यस्त संस्था उच्च न्यायिक सेवा नियमों को चुनौती दे। कुछ शिकायती अभ्यर्थी हमारे पास आएं, हम उनका पक्ष सुनेंगे।

 

शर्मा ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इसे सेवा का विषय मानते हुए और इसे खारिज करके भूल की है। उन्होंने दलील दी कि यह जनहित याचिका है क्योंकि प्रावधान समाज के सभी वर्गों को प्रभावित करते हैं। तब पीठ ने शर्मा से पूछा कि क्या किसी शिकायती अभ्यर्थी को याचिका में पक्ष बनाया गया है तो वरिष्ठ वकील ने नहीं में जवाब दिया। पीठ ने कहा, शिकायती अभ्यर्थी हमारे समक्ष आएं, हम उनका पक्ष सुनेंगे, आपका नहीं। एनजीओ ने अपनी अपील में कहा कि 2012 से उच्च न्यायिक सेवाओं में सभी श्रेणियों में विज्ञापित कुल 75 रिक्त पदों में से 73 पद अब भी खाली हैं और उन्हें आगे बढ़ाया जा रहा है।


योज्ञता और वरिष्ठता के आधार पर होती है न्यायाधीशों की नियुक्ति : न्यायालय

नयी दिल्ली। उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया एक सुस्थापित प्रक्रिया के माध्यम से होती है, जिसमें उच्च न्यायालय का कॉलेजियम न्यायाधीशों की वरिष्ठता, योज्ञता और सरकार द्वारा उनके बारे में प्राप्त सभी सूचनाओं पर विचार करता है। उच्चतम न्यायालय ने एक न्यायाधीश की पदोन्नति को रोकने की कोशिश करने तथा अदालती कार्यवाही का दुरुपयोग करने पर एक वकील पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए यह टिप्पणी की।

 

न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने एक वकील की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। वकील ने अपनी याचिका में उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल ए वेंकटेश्वर रेड्डी को तेलंगाना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति करने के प्रस्ताव पर प्रस्तुत अपने विरोध-पत्र पर विचार करने और आदेश जारी करने की मांग की थी। दरअसल, उच्चतम न्यायालय के तीन सदस्यीय कॉलेजियम ने 17 अगस्त को हुई बैठक में रेड्डी सहित छह न्यायिक अधिकारियों को तेलंगाना उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में पदोन्नत करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी।

 

देश की शीर्ष अदालत, अधिवक्ता बी शैलेश सक्सेना द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें केंद्र, तेलंगाना और तेलंगाना उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (सतर्कता और प्रशासन) को अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत विरोध-पत्र पर विचार करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल ए वेंकटेश्वर रेड्डी के खिलाफ कई आरोप लगाए हैं और कहा कि न्यायाधीश के रूप में उनकी पदोन्नति नहीं की जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा, हम याचिकाकर्ता की बेशर्मी को देखकर आश्चर्यचकित हैं, क्योंकि अब वह मौजूदा याचिका को भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर कर रहा है।

 

उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा, हमारा विचार है कि लागत की उचित वसूली ही एकमात्र समाधान प्रतीत होता है। हम इस प्रकार रिट याचिका को खारिज करते हुए चार सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकॉर्ड वेलफेयर फंड में पांच लाख रुपये जमा करने का निर्देश देते हैं। हम यह भी उचित समझते हैं कि बार काउंसिल आफ तेलंगाना याचिकाकर्ता की एक सदस्य के रूप में आचरण की जांच करे और उस उद्देश्य के लिए आदेश की एक प्रति तेलंगाना की बार काउंसिल को भेजी जाए।

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